Book Title: Rajkumari Chandanbala Diwakar Chitrakatha 011
Author(s): Saritashree  Sadhvi, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 14
________________ राजकुमारी चन्दनबाला श्रेष्ठी धनावाह को यह सुनकर बड़ा दुख हुआ। उसने मन ही मन वसुमती को उस दास बाजार से | मुक्ति दिलाने का निश्चय कर लिया। वह बोला-1 (बेटी, तेरे बेचने वाले ने कितनी सौनेया मांगी हैं। सामना कोई बात नहीं । मैं एक लाख -दूँगा। तू मेरे घर पर सौनेया चल। वसुमती को सेठ सज्जन पुरुष लगे। किन्तु उसने |फिर भी पूछ लिया। वसुमती सेठ के उत्तर से संतुष्ट होकर उसके साथ चलने को तैयार हो गई। लो भाई तुम्हारी एक लाख सोनैया; आज से यह मेरी बेटी है। सेठ जी! आप मुझसे किस प्रकार का काम लेंगे? पुत्री! मैं वीतराग भगवान का उपासक हूँ। सदाचार मेरे घर का श्रृंगार है। मेरे घर के द्वार पर आया कोई अतिथि खाली न लौटे यही काम तुम्हें करना है। सेठजी ने सारथी को एक लाख सौनेया दे विदा किया और वसुमती को अपने साथ ले गये। 12 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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