Book Title: Rajkumari Chandanbala Diwakar Chitrakatha 011
Author(s): Saritashree  Sadhvi, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 19
________________ अब सेठानी चंदनबाला के काम में कमियाँ निकालने लगी। दान करने पर भी उसे डाँटने लगी। कल तो घर में इतना आटा था ? कहाँ गया सब ? भिक्षुकों को दे दिया माताजी । एक बूढ़ी दासी से यह न देखा गया। वह सेठानी से बोली सेठानी जी! वह आपकी कितनी सेवा करती है। फिर भी आप उसी पर क्रोध करती रहती हैं। राजकुमारी चन्दनबाला तू मूर्ख है। अभी तक समझ नहीं पायी...... इसने सेठजी पर डोरे डाल रखे हैं। Ein Education International हाँ! हाँ क्यों नहीं? पराया माल जो है। खूब लुटा | दान पुण्य के बहाने घर लुटा रही है। कौड़ी-कौड़ी को मोहता कर देगी एक दिन । माताजी! आगे से ध्यान रखूँगी। अब कोई भूल नही होगी। अपना दोष न होते हुए भी चंदनबाला ने क्षमा माँग ली। क्षमा कीजिए सेठानी जी! सेठजी और चंदना धार्मिक प्रवृत्ति वाले पवित्र विचार के हैं। आप यह बुरे विचार अपनी मलिन बुद्धि से निकाल दीजिए। मुझे अक्ल सिखाती है। मेरी बुद्धि को मलिन कहती है। जा! निकल जा यहाँ से। 17 For Private & Personal Use Only wwww.jainelibrary.org

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