Book Title: Rajkumari Chandanbala Diwakar Chitrakatha 011
Author(s): Saritashree Sadhvi, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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राजकुमारी चन्दनबाला सेठानी की डांट खाकर दासी वहाँ से चली गयी। सेठानी सोचने लगी
अब तो दासियाँ भी चंदना की तरफदारी करने लगी हैं। मुझे तुरन्त कोई उपाय करना होगा।
अगले दिन प्रातः उठते ही चंदना ने सेठजी के लिए भोजन तैयार कर दिया। ब्रह्ममुहूर्त्त में सेठ ने प्रस्थान किया।
पिताजी ! आप जल्दी आना मेरी दाँयीं आँख फड़क रही है। प्रभु कृपा से आपकी यात्रा मंगलमय हो ।
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हूँ... अब देखती हूँ इसको.....
वह सोचते हुए अपने कक्ष में पहुँची। तभी सेठजी ने आकर सेठानी से कहा
प्रिये! मुझे दूसरे नगर जाना है। कल सुबह ही निकल जाऊँगा।
तीन दिन तो लग ही जाएँगे। व्यापारिक कार्य है।
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कब लौटेंगे? स्वामी ?
सेठजी के जाने के बाद सेठानी ने अंदर आकर सभी नौकरों से कहा
तुम लोग अवकाश माँग रहे थे न... अभी यहाँ कोई विशेष काम भी नहीं है अपने अपने घर हो आओ।
सेठानी ने सब दास-दासियों को छुट्टी दे दी।
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