Book Title: Rajkumari Chandanbala Diwakar Chitrakatha 011 Author(s): Saritashree Sadhvi, Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 13
________________ राजकुमारी चन्दनबाला इतना सुनते ही नगर नायिका की आँखों से आँसू वसुमती ने कहालुढ़क पड़े। वह बोली मुझे क्षमा कर दे बेटी ! तू तो नारी नहीं, कोई देवी है? धिक्कार है मेरे जीवन को! आज तक मैंने पाप ही पाप किये हैं। आज से सदाचार का पालन करूंगी। दुःखी न होइए माताजी! जब (आँख खुले तभी सबेरा है। NE वसुमती ने उसे सदाचार का महत्व समझाया। |चबूतरे पर केवल सारथी और वसुमती रह गये। सारथी नगर नायिका अपनी दासियों के साथ वापिस चली | फिर से बोली-लगाने लगा। तभी उधर से नगर. श्रेष्ठी गयी। RAJ सेठ धनावाह निकले। वे बड़े सरल स्वभावी एवं धार्मिक माताजी ! प्रभु ने आपको प्रवृत्ति वाले थे। वसुमती को देख उनके मन में वात्सल्य सद्बुद्धि दी है, धन्य है। उमड़ पड़ा। उन्होंने वसुमती से पूछा बेटी ! तुम तो भले घर की लगती हो, यहाँ क्या कर रही हो? सेठजी ! मैं यहाँ बिकने के लिये आई हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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