Book Title: Rajkumari Chandanbala Diwakar Chitrakatha 011 Author(s): Saritashree Sadhvi, Shreechand Surana Publisher: Diwakar Prakashan View full book textPage 9
________________ राजकुमारी चन्दनबाला |वह चिल्लाकर बोली दोनों को झगड़ते देख वसुमती सारथी से बोलीमुझे बेटी नहीं, धन चाहिए। पिता जी। आप माता की तुम इस छोकरी को बेचकर इच्छा पूरी कीजिए। मुझे मुझे एक लाख सौनेया बेच दें। लाकर दो। वर्ना... क्या कहा? पुत्री को बेच दूँ। TOGA 0000 सारथी और उसकी पत्नी घर के बाहर ही झगड़ने लगे। बोली फिर वसुमती सारथी की पत्नी की ओर मुड़कर इसके बाद वसुमती ने सारथी से कहा चलिए पितामी! माता जी! मुझे क्षमा देर न करें। करें मैंने आपका दिल दुखाया है। सारथी वसुमती को लेकर दुःखी मन से चल दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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