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रामकुमारी चन्दनबाला पास खड़ी वसुमती ने सारथी से कहा- यह सुनते ही सारथी की आँखों से आँसू उमड़ पड़े। सुनो भाई! तुम्हारी
NHAAबेटी ! तुम्हारी माता के दुष्टता देख मुझे अत्यन्त
बलिदान ने मेरी सोई हुई दुख हुआ है। अपने शील
आत्मा को जगा दिया है। अब की रक्षा के लिए मैं भी
मैं ऐसा नीच कार्य नहीं करूंगा। प्राण त्याग रही हूँ।
मुझ पर विश्वास करो।
एक क्षण पहले के तुम्हारे राक्षसी रूप को देख मैं कैसे विश्वास कम्?
ऐसा मत कहो बेटी! मुझ पर विश्वास करो। मैं तुम्हें विश्वास दिलाने के लिए सब कुछ कर
सकता हूँ।
वसुमती ने देखा कि सारथी पश्चात्ताप की आग में जल रहा है। तब वह बोली--
आप रोएं नहीं। यदि आप मुझे बेटी मानेंगे तो मैं अपने प्राण नहीं
त्यागूंगी।
इतना कहते-कहते सारथी टोने लगा।
यह सुन सारथी को धैर्य बंधा। उसने वसुमती को अपनी पुत्री बना लिया और स्वयं उसका धर्म पिता बन गया।
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