Book Title: Rajasthan Jain Sangh Sirohi Sankshipta Report
Author(s): Pukhraj Singhi
Publisher: Pukhraj Singhi

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Page 4
________________ करे, श्रे खास जरूरी छ । जे जे स्थले प्रभु भक्ति आदिनां प्रसंगे जे जे उपज्यो थाय छे, तेनो द्रव्य सप्ततिका आदि ग्रंथों मां बतावेली ते ते शास्त्रीय मर्यादा मुजब उपयोग थाय अने ते ते उपजो जेम बने तेम जल्दी ते ते खाता मां भराई जाय ते माटे पण सक्रीय विचारणा कराय ते हितकर छे, के जेथो बाली बोलनार के वहीवटदार व्याज भक्षणादिमां निमित बनों महादोष ना भागोदार न बने। जैन धर्म जे सर्वश्रेष्ठ धर्म छे ते धर्मनी विधि निषेधनी मर्यादाओं तेमज जैन धर्मना दरेक स्थलो-स्थापत्यो-शिल्पकला वगेरे सम्यग् दर्शन नी प्राप्ति तथा शुद्धि ना कारणो छ, प्रभुभक्तिनां प्रतीको छे । ते प्रदशनना के मोज मजा ना स्थलो वगेरे न बने तेमज तेवा दर्शनीय पवित्र स्थलनो तथा चीजों ना दर्शन नी जे विधि निषेध मुनब नी मर्यादामो शास्त्रे दर्शावी छे तेनुय बराबर पालना थाय तेवी सघलो जोगवाई वहीवटवारो श्रे योजवी अने तेनो अमल करवा सक्रिय पगला भरवा खूबज तकेदारी राखवी जरूरी छ । श्री जैन संघ नी आत्महितकर मने सम्यग् दर्शन प्राप्ति अने शुद्धिनां परम् आलंबन रूप तीर्थो-मंदिरोंशिल्पो-साहित्यो वगेरे जे सम्पति छे तेना ऊपर कोई ना पण तरपथी कोई पण प्रकारे आक्रमण-आक्षेपो-आदि दखलगिरियो थाय तेनो सबल प्रतिकार करवा सकल श्री संधे पोतना तन-मनधन अने सधली शक्तिमो सदुपयोग करवा पूर्वक सफल सामनो करवा तत्पर बनवु खूबज जरूरी छ । प्रापणा पूर्वजो आपणाने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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