Book Title: Rajasthan Jain Sangh Sirohi Sankshipta Report
Author(s): Pukhraj Singhi
Publisher: Pukhraj Singhi

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Page 16
________________ राजस्थान जैन संघ को उन्होंने अपने पैरों पर खड़ा कर दिया है और उनके वरदहस्त के नीचे राजस्थान जैन संघ ने धूप-छांव देखी है जो इनका इतिहास बन गया है। पूज्य उपाध्याय श्री धर्मसागरजी महाराज साहब ने अपने जीवनकाल में राजस्थान जैन संघ की प्रवृतियों को भारत में तीर्थों के विविध पेचीदै मामलों में सहायता करने की प्रेरणा देने का कार्य सौंपा है और इसी वजह से इसका कार्य क्षेत्र राजस्थान ही नहीं रहकर पूरा भारत का क्षेत्र रहा है। पहले श्री राजगृहीं एवं पावापुरी तीर्थ। बिहार के आपसी मतभेदों को संघ ने निपटाया, इसी प्रकार मगरवाड़ा। मणिभद्र तीर्थ जो पालनपुर, जिला बनासकांठा के निकट है और जहां पर यति संप्रदाय की परम्परा रही है। इस तीर्थ का मामला सुलझाने के लिए संयोजक ने व्यक्तिगत रूप से रुचि लेकर कानूनी सलाह-सूचन देकर सुलझाने का प्रयत्न किया है लेकिन यतीजी की मानसिक विचित्रता के कारणं अभी तक मामला उलझा हुआ है और उसकी अपील गुजरात हाई कोर्ट में लम्बित है। "यतीजी का स्थानीय लोगों के साथ झगड़ा चलता है लेकिन आशा है कि यह मामला सुलझ जाएगा। श्री देवगढ़ मदारिया में मंदिर, उराश्रय व यतीजी की कुछ जमीनें हैं वहां पर उक्त मामला तहसीलदार के साथ चल रहा था और उसके लिए श्री शंकरलालजी मुणोत ब्यावर वाले प्रयत्नशील रहे हैं और उस मदिर की व्यवस्था आदि कराने में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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