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प्राक्कथन
दिनांक 2 व 3 ज न, 1976 को राजस्थान जैन संघ, सिरोहो द्वारा जैन श्री संघ के प्रतिनिधियों व कार्यकर्ताओं का सम्मेलन, देलवाड़ा जैन श्वेताम्बर मंदिर, आबू के वल्लभ लायब्ररी कक्ष में आयोजित किया गया था । उक्त सम्मेलन में पारित प्रस्तावों को कार्यान्वित करने के लिए विभिन्न प्रयास किये गये थे। उसके पश्चात् 10-11 वर्ष की समयावधि में जो कार्य हुआ वह सर्वविदित है।
उस समय से कई कार्यकर्तागण यह महसूस कर रहे थे कि उन सबका मिलन पुनः हो और विचार-विमर्श कर भावी रूपरेखा राजस्थान में बनाई जावे और समस्त श्री संघ, जैन धर्म एवं उनके प्रन्यासों की सम्पत्ति के विषय में निर्णय लिये जावे । उसके फलस्वरूप सम्मेलन का आयोजन दिनांक 31 मई से 1 जन, 1987 को देलवाड़ा मंदिरों के प्रांगण में वल्लभ लायब्ररी कक्ष में किया गया और जो निर्णय लिये गये हैं वे प्रस्ताव के रूप में प्रस्तुत हैं।
सम्मेलन में हुई कार्यवाही की रिपोर्ट, राजस्थान जैन संघ की प्रवृत्तियों की संक्षिप्त रिपोर्ट, पारित प्रस्ताव, कार्यकारिणी समिति, विशेष आमन्त्रित समिति एवं सलाहकार समिति के सदस्यों की सूची आदि इस पुस्तिका में संकलित की गई है।
आशा है पुस्तिका उपयोगी सिद्ध होगी। 14 जन, 1987, सिरोही।
(पुखराज सिंघी)
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वसन्तराव पाटिल राज्यपाल राजस्थान
संदेश
राज भवन जयपुर कैम्प- माउण्ट आबू
दिनांक मई 30, 1987
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि राजस्थान जैन श्री संघ सम्मेलन का आयोजन बाबू पर्वत पर दिनांक 31 मई, 1987 को हो रहा है।
राजस्थान में जैन समाज एक पढ़ा लिखा वर्ग है । उसमें सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक जागृति है । वह समाज सेवा के क्षेत्र में जैसे अकाल एवं बाढ़ के समय मानव तथा अन्य जीवों की सेवा निरन्तर करता रहा है। यह सब जैन धर्म के ठोस सिद्धान्तों हिंसा, त्याग और अपरिग्रह आदि के व्यक्तिगत जीवन में सरल और सहज अभ्यास से सम्भव प्रतीत होता है ।
मैं सम्मेलन की सफलता के लिये मंगल कामना करता हूँ ।
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सही
( वसन्तराव पाटिल )
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चंदनवाला बम्बई-6-2043 ना वैशाख वद 12 रविवार पूज्यपाद परमशासन प्रभावक सुविशालगच्छाधिपति व्याख्यान वाचस्पति प्राचार्यदेव श्री मद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज तरफ थी।
देवगुरू भक्तिकारक सुश्रावक पुखराज जी सिंघी योगधर्मलाभ साथे लखवानु जे- तमारो ता. 3-5-87 नो पत्र मल्यो तेमा तमे - “ देलवाड़ा जैन श्वेताम्बर मंदिर, आबू पर्वत पर दिनांक 31 मार्च से 1 ज न, 1987 तक राजस्थान जैन श्री संघ सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। उक्त सम्मेलन में धार्मिक ट्रस्टों, संघों एवं जैन धर्म, कला, एवं संस्कृति पर होने वाले आक्षेपों एवं आघातों का प्रतिकार करने हेतु राजस्थान प्रदेश में एक सशक्त संगठन का गठन किया जावेगा। सम्मेलन की सफलता के लिए आपके आशिर्वाद एवं मार्गदर्शन की अपेक्षा है कृपया अनुगृहित करावें । 'पा प्रमाणे अणावी मारा आशिर्वाद अने मार्गदर्शन नी अपेक्षा राखो छो तो ते अंगे जणाववानु के- तमे प्रभुशासन नी मर्यादानुसार शास्त्रासापेक्ष रीते जे कांई सुदर कार्य करो तेमा मारा तमने शुभाशिर्वाद छ ज । राजस्थान श्री संघ जयारे एकत्रित थाय ज छे त्यारे समग्र राजस्थान मां धार्मिक ट्रस्टों नो वहीवट, सातक्षेत्रो तथा जीवदया-अनुकम्पा ना क्षेत्र नो वहीवट शास्त्रीय मर्यादानुसार थाय ते माटे नक्कर पगला विचारी तेनो निर्णय करे अने तेमां जे जे सुधारक विचारों के प्रशास्त्रीय प्रवृद्धियों प्रवेशो गई होय तेने दूर करवा पण निर्णय
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करे, श्रे खास जरूरी छ । जे जे स्थले प्रभु भक्ति आदिनां प्रसंगे जे जे उपज्यो थाय छे, तेनो द्रव्य सप्ततिका आदि ग्रंथों मां बतावेली ते ते शास्त्रीय मर्यादा मुजब उपयोग थाय अने ते ते उपजो जेम बने तेम जल्दी ते ते खाता मां भराई जाय ते माटे पण सक्रीय विचारणा कराय ते हितकर छे, के जेथो बाली बोलनार के वहीवटदार व्याज भक्षणादिमां निमित बनों महादोष ना भागोदार न बने।
जैन धर्म जे सर्वश्रेष्ठ धर्म छे ते धर्मनी विधि निषेधनी मर्यादाओं तेमज जैन धर्मना दरेक स्थलो-स्थापत्यो-शिल्पकला वगेरे सम्यग् दर्शन नी प्राप्ति तथा शुद्धि ना कारणो छ, प्रभुभक्तिनां प्रतीको छे । ते प्रदशनना के मोज मजा ना स्थलो वगेरे न बने तेमज तेवा दर्शनीय पवित्र स्थलनो तथा चीजों ना दर्शन नी जे विधि निषेध मुनब नी मर्यादामो शास्त्रे दर्शावी छे तेनुय बराबर पालना थाय तेवी सघलो जोगवाई वहीवटवारो श्रे योजवी अने तेनो अमल करवा सक्रिय पगला भरवा खूबज तकेदारी राखवी जरूरी छ । श्री जैन संघ नी आत्महितकर मने सम्यग् दर्शन प्राप्ति अने शुद्धिनां परम् आलंबन रूप तीर्थो-मंदिरोंशिल्पो-साहित्यो वगेरे जे सम्पति छे तेना ऊपर कोई ना पण तरपथी कोई पण प्रकारे आक्रमण-आक्षेपो-आदि दखलगिरियो थाय तेनो सबल प्रतिकार करवा सकल श्री संधे पोतना तन-मनधन अने सधली शक्तिमो सदुपयोग करवा पूर्वक सफल सामनो करवा तत्पर बनवु खूबज जरूरी छ । प्रापणा पूर्वजो आपणाने
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तारक तीर्थों-मंदिरों वगेरे नो परमतारक अजोड़ वारसो पापी गया छ । कवाच तेवो नवो वारसो आपणे सर्जन शकीये तोय मेलवा अमूल्य वारसानु संरक्षण करवानी आपणी जवाबदारी मांथी जराय चलित न थइये श्रेय आपणी महान अने नैतिक फरज बनी रहे छे । राजस्थान श्री संघ पोतानी फरजोनु पालन करवामां सुसफलता पामे अज अक नी श्रेक सदा माटे नी शुभाभिलाषा।
जाणवा मुजब बालदीक्षा ऊपर प्रतिबंध मुकवा माटे सुप्रीम कोर्ट मां दाखल करायेल रीट अरजी नी सतावार माहिती मेलवी जो ते वात साची होय तो तेनो सबल अने सफल प्रतिकार करवा माटे य तमे सुन्दर प्रयत्न करो, ग्रे जरूरी छ । आवो प्रतिबंध श्रे श्री जैन धर्म नहीं मूलभूत मान्यता ऊपर कुठाराघात समान छ।
द० मुनिहेमभूषण विजय ना धर्मलाभ
द्वारा श्री जिनवाणी प्रचारक ट्रस्ट, 59, बैंक ऑफ इण्डिया बिल्डिंग, 185; शेख मेमन स्ट्रीट, मुम्बई-400 002
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माननीय श्री संघ के प्रतिनिधिगण,
मान्यवर,
राजस्थान प्रदेश में जैन धर्मावलम्बी काफी संख्या में निवास करते हैं और उनके कई ऐतिहासिक तोर्थ, मन्दिर, उपाश्रय, स्थानक, धर्मशाला, पुस्तकालय, विद्यालय एवं कई धार्मिक व धर्मादा प्रन्यास एवं संस्थायें जनसेवा के कार्यों में रत हैं। इन संस्थाओं, प्रन्यासों द्वारा जब कभी प्राकृतिक विपदायें-बाढ़, अकाल एवं महामारी आदि आती है तो मानव समाज की सेवा करने में भारी योगदान दिया जाता है । मानव सेवा ही नहीं वरन् प्रत्येक जीव मात्र की सेवा ही हमारे धर्म व समाज का मुख्य उद्देश्य रहा है। इतना ही नहीं जैसा पूज्य आचार्य भगवन्त श्री1008 श्रीमद्विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी महाराज साहब ने अपने सच्चाई शीर्षकान्तर्गत कहा है-"सवि जीव करु शासन रसि" इसी भावना से हमारा समाज, धर्मोपदेश एवं श्री संघ अोतप्रोत है । फिर भी आज कुछ हमारी ऐसी समस्यायें है जिनका निराकरण संगठित रूप से करना है जिससे हमारी उक्त भावना को सम्बल मिले तथा हमारा समाज व श्री संघ शान्तिपूर्वक अपने तीर्थ, मंदिर, उपाश्रय, प्रन्यासों एवं संस्थाओं की व्यवस्या एवं सुरक्षा कर सके और जो कार्य संस्कृति (जैन संस्कृति) हमें उत्साहित करती है उसका संवर्धन हो सके । भारतीय संविधान में धारा 25-26 एवं 30 में निम्न प्रावधान है :
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लेकिन राज्य की ओर से जो कानून बनते हैं उससे हमारी संस्कृति, धर्म, कला एवं धार्मिक व धर्मादा सम्पति का परिरक्षण नहीं होता है और इस क्षेत्र में निरन्तर हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है । राज्य सरकारों को इन संरक्षरण की आड़ में हमारे शास्त्रों में उल्लेखित विधि-विधान व कार्य प्रणाली के विरुद्ध कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए । विशेष रूप से हमारे जो देवद्रव्य की रक्षा हमारे शास्त्रों में निहित है उस जैसी व्यवस्था विश्व के किसी धर्म अथवा कानून में नहीं है जिसके फलस्वरूप आज हजारों की संख्या में मंदिरों एवं स्थानकों का जीर्णोद्धार व निर्माण हो रहा है परिणामस्वरूप आज लाखों लोगों को रोजी-रोटी मिल रही है साथ ही साथ कला एवं संस्कृति की रक्षा भी हो रही है । इसके मुकाबले का एक भी उदाहरण उपलब्ध नहीं होगा । इसलिए राजस्थान सार्वजनिक प्रन्यास अधिनियम में जो प्रावधान हिसाब रखाने के तथा स्वीकृति के रखे गये है वे शास्त्रों के अनुरूप नहीं होने से हमारी व्यवस्था में हस्तक्षेप करते है और उससे कन्फलिक्ट पैदा होता है और करप्ट प्रेक्टिसेज बढ़ती है । हिन्दू धर्मस्व प्रायोग ने अपनी रिपोर्ट में जो सराहना जैन संघों व समाज द्वारा मंदिरों का जिर्णोद्धार और कला-संस्कृति के परिरक्षरण के बारे में की है उससे स्पष्ट है कि संस्कृति की रक्षा सरकारी तौर पर नहीं हो सकती और जो हस्तक्षेप देलवाड़ा जैन मंदिरों, जैसलमेर आदि अन्य मंदिरों के कला एवं संस्कृति के बारे में किया गया है और जो किया जा रहा है वह हर प्रकार से अनुपयुक्त है और तुरन्त बन्द होना चाहिए ।
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हमारी संस्थाओं, प्रन्यासों, मंदिरों एवं तीर्थों की सम्पति एवं संस्कृति की सुरक्षा, संचालन व व्यवस्था आदि के बारे में एक ऐसा कानून बन जाना चाहिए जिससे संघ व समाज के प्रतिनिधियों द्वारा ही संचालन, व्यवस्था आदि का प्रावधान हो और सरकारी तौर पर कोई हस्तक्षेप नहीं हो। श्री संघ एवं समाज में कई ऐसे मसले है जिनके लिए हमारे आपसी मतभेद व कलह बढ़ते है और न्यायालयों में हमारी शक्ति व धन का अपव्यय होता है परिणामस्वरूप हम समाज व श्री संघ के हितार्थ कोई काम नहीं कर सकते है और हमारा समाज व श्री संघ प्रगति की ओर अग्रसर नहीं होता है इसलिए इस आन्तरिक स्थिति को भी सुधारना इस सम्मेलन का परम ध्येय होना चाहिए और इसी ओर में आपका विशेष रूप से ध्यानाकर्षित करना चाहता हूं। समाज व श्री संघ के ढांचे में और विधि-विधान में बहुत कुछ त्रुटियां आ गई है। जिसके फलस्रूप आज संगठित तौर पर कोई काम समाज की प्रगति का नहीं हो रहा है। हम इस सम्मेलन में निर्णय करें तथा ऐसी व्यवस्था दें कि जिससे हमारे समाज व संघों के मामले न्यायालयों में न जावे और धन और शक्ति का अपव्यय रुके । मैं चाहूंगा कि राजस्थान प्रदेश में अपने श्री संघ की ओर से स्थानीय स्तर पर तीन व्यक्तियों की एक समिति बने जिसके समक्ष स्थानीय मामले रखे जावें और जो समिति जांच पड़ताल कर निर्णय दे उस निर्णय के विरुद्ध जिला स्तर पर एक अपीलांट समिति बने जहां अपील हो सके और अपीलांट समिति के निर्णय के विरुद्ध राज्यस्तर पर गठित ट्रिब्यूनल में
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अपील प्रस्तुत हो सके। जिला स्तर एवं प्रदेश स्तर पर बने न्यायालयों में रिटायर्ड जज अथवा प्रभावशाली सदस्य हो और वे उक्त जिले के बाहर के निवासी हो। इस तरह प्रांतरिक मसलों पर हमारे समाज व संघ को निर्णय शीघ्र मिल सकेगा और समाज व संघ में शान्ति एवं सद्भाव पैदा होगा।
हमारे प्रदेश का एक प्रभावशाली संगठन बने और उसमें अलग-अलग समीतियों का गठन किया जावे तथा जो समीतियां बनें उसके सयोजक प्रभावशाली हों और वे विविध विषयों पर कार्य करें।
विधि समिति-न्यायालयों सम्बन्धी मामलों में सलाह सूचना दे तथा नियमान्तर्गत संस्थाओं, प्रन्यासों का संचालन करें। इसी प्रकार
__ जिर्णोद्धार समिति-जिन-जिन मंदिरों एवं स्थानकों आदि में जिर्णोद्धार की आवश्यकता हो उसकी रिपोर्ट तैयार करें तथा सलाह-सूचन दे तथा अर्थ उपलब्धि में सहायक हो ।
शिलालेख समिति-प्रदेश भर के पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मंदिरों एवं तीर्थों में उपलब्ध शिलालेखों का संग्रह-संकलन करें और पुरातत्व एवं ऐतिहासिक दृष्टि से कार्य करें। ___ कला एवं संस्कृति रक्षक समिति-जो कला, संस्कृति, धर्म, समाज व संघ पर आरोप व आक्षेप हो उनका निराकरण करें और संस्कृति की रक्षा करें।
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व्यवस्थापक समिति-जो भग्न मंदिरों, तीर्थों एवं स्थानकों की सुरक्षा एवं व्यवस्था का जिम्मा ले और जो उपेक्षित मंदिर है उनके पूजा व्यवस्थादि का जिम्मा ले ।
पब्लिक ट्रस्ट रजिस्ट्रेशन सम्बन्धी समिति-समाज व श्री संघ की जितनी भी संस्थायें, प्रन्यास, धर्मशाला, मंदिर एवं तीर्थ आदि है और जिनका रजिस्ट्रेशन राजस्थान पब्लिक ट्रस्ट एक्ट, सोसायटीज एक्ट के अन्तर्गत आवश्यक हो तो सूचना प्राप्त कर पंजीकरण सम्बन्धी कार्यवाही करें।
संगठन समिति-जो संस्था के गठन, व्यवस्था एवं बैठकों आदि के सम्बन्ध में कार्य करें। इसके उपरान्त जो कोई विशेष मसले संगठन के सामने प्रावेंगे उसके निराकरण के लिए एक विशेष समिति की नियुक्ति की जावे जो इसके बारे में निराकरण कर सकें।
विहार एवं व्यावच्च समिति-राजस्थान प्रदेश में विहार करने में साधु-मुनिराजों के व्यवस्था में आने वाली कठिनाईयों को दूर करने में तथा उन्हें समुचित सुविधा उपलब्ध कराने तथा चार्तुमास वगैरह के सम्बन्ध में कार्य करें।
रोजगार समिति-समाज व श्री संघ में जो उपेक्षित लोग हैं और जिन्हें रोजगार के समुचित साधन उपलब्ध नहीं हैं उनके लिए रोजगार उपलब्ध कराने में सहायक हो।
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शिक्षा-दीक्षा समिति जो विद्यार्थी तथा मुमुक्षी जीवों को शिक्षा-दीक्षा हेतु प्रोत्साहित करने के लिए काम करें तथा विद्याथियों को आधुनिक एवं धार्मिक शिक्षा उपलब्ध कराने में सहायक हो।
इस तरह हम सब काम का बंटवारा कर सामूहिक रूप से संकल्प करें तो मैं समझता हूं कि हम समाज व श्री संघ की बड़ी भारी सेवा कर सकेंगे और उससे समाज का उत्थान होगा। संगठन के विचार करने के अलावा मैं एक बात महसूस कर रहा हूं कि हमें राजनैतिक स्तर पर भी अपने को अलर्ट करना चाहिए ताकि हमारे हितों की सुरक्षा तथा मानव व शासन सेवा अच्छे ढंग से हो सके। हमारी यह बातचीत सामूहिक उत्थान की है इसलिए हमको संकल्प कर विविध कार्यों में हमें रुचि लेनी चाहिए और त्याग व सेवा की भावना को प्रदर्शित करना चाहिए। जैन धर्म त्याग व अहिंसा का धर्म है और हम उत्कृष्ट भावना को अपनाएं जिससे मानव समाज की सेवा ही नहीं होगी अपितु हम स्वयं आत्मोत्थान की ओर अग्रसर होंगे। ____ मैं आशा करता हूं कि आप विषय विचारणी समिति में विचार कर समाज, श्री संघ, धर्म, कला एवं संस्कृति के हित में निर्णय लेंगे और तीर्थ रक्षा, धर्म रक्षा एवं संस्कृति रक्षा का कार्य पूर्ण करने के लिए तत्पर रहेंगे।
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संक्षिप्त रिपोर्ट राजस्थान जैन संघ, सिरोही की स्थापना सन् 1956 में होने के पश्चात् देलवाड़ा जैन श्वेताम्बर मदिर, आबूपर्वत के प्रांगण में दिनांक 2 व 3 जून, 1976 को राजस्थान भर के प्रतिनिधियों एवं कार्यकर्ताओं का सम्मेलन आयोजित किया गया था और उसमें विशेष रूप से श्री केशरियाजी तीर्थ, धुलेवा । जिला उदयपुर। राजस्थान सार्वजनिक प्रन्यास अधिनियम आदि के प्रावधानों तथा राजस्थान जैन संघ, सिरोही के विधान सबंधी प्रस्ताव पारित किये गये थे। प्रन्यासों के रजिस्ट्रेशन बाबत, प्रन्यासों का प्राटोनोमस बोर्ड बनाने, साधु-मुनिराजों के व्यवस्था बाबत, श्री महावीरजी, जिला- संवाई माधोपुर, को जैन श्वेताम्बर तीर्थ घोषित कराने एवं प्राबू तीर्थ पर श्री आदीश्वर भगवान के पितलहरं मैंदिर के बावन जिनालय निर्माण करने के बारे में कमेटी का निर्माण, आदि के प्रस्ताव पारित किये गये थे। उन पारित प्रस्तावों को क्रियान्वित करने के लिये जो सम्भव कदम लिये गये हैं लेकिन जितना चाहिये उतना प्रयास सम्भव नहीं हुआ।
राजस्थान जैन संघ की प्रवृत्तियां विविध प्रकार की रही हैं और संघ का प्रयत्न यथासम्भव, जहां-जहां के कार्यकर्ता प्रतिनिधिगण अथवा समाज या संघ जागरूक एवं प्रयत्नशील रहे हैं वहां-वहां सहायता करने में अग्रसर रहा है और उसमें उपलब्धियां भी प्राप्त हुई हैं।
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श्री केशरियाजी तीर्थ का मामला राजस्थान जैन संघ ने हो उठाया है और यह प्रयत्न किया है कि यह तीर्थ तथा इसकी प्रबन्ध-व्यवस्था राज्य सरकार के अधीन चली गयी है उसको वापिस लिया जावे। उसके लिए समय-समय पर न्यायालयों द्वारा राजनैतिक स्तर पर पत्र-व्यवहार व कार्रवाईयां की गई। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले दिनांक 14-12-73 में यह महत्वपूर्ण घोषणा की कि "श्री केशरियाजी मंदिर जैन मंदिर है और इस मंदिर की व्यवस्था उस सम्प्रदाय को सुपूर्द की जावे जिस सम्प्रदाय का यह साबित हो ।' राज्य सरकार की ओर से इस विषय में कोई कदम नहीं उठाये गये जिस पर राजस्थान जैन संघ ने श्री उदयपुर श्री संघ के नाम से सुप्रीम कोर्ट के निर्णय तामील करने हेतु सिविल रीट पिटीशन सं0 21/81 राजस्थान हाई-कोर्ट में दाखिल की और उसमें दिगम्बरों की ओर से इन्टरवेन्शन किया गया और राज्य सरकार और दिगम्बरं सम्प्रदाय ने अपने-अपने कथन प्रस्तुत किए हैं। अभी यह रीट हाई कोर्ट में लम्बित है इसका निर्णय निकट भविष्य में होगा। उसके उपरान्त दिगम्बर सम्प्रदाय की और से श्री केशरियाजी तीर्थ को दिगम्बर आम्नाय का तीर्थ घोषित करने के लिए डी० बी० सिविल रीट पिटींशन सं०........हाईकोर्ट में दाखिल की गई है और उसमें श्वेताम्बर सम्प्रदाय को अप्रार्थी बनाया गया है और यह रोट भी अभी लम्बित है। और इसका भी निर्णय होने में समय लगेगा। यहां पर यह उल्लेख करना आवश्यक है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय दिनांक 14f2-73 के
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पश्चात् दिगम्बर सम्प्रदाय को ओर से राजस्थान हाई कोर्ट में जो रीट केशरियाजी तीर्थ को दिगम्बर आम्नाय का घोषित करने के लिए प्रस्तुत की थी और लम्बित थी वह उन्होंने वापिस खींच ली है इसलिए अब वे इसकी घोषणा पाने के अधिकारी नहीं होंगे ऐसी आशा है। जहां तक व्यवस्था सौंपने का प्रश्न है राजस्थान सार्वजनिक प्रन्यास अधिनियम की धारा 52 व 53 के अनुसार इस तीर्थ का वहीवट राजस्थान सरकार को जैन सम्प्रदाय के उक्त आम्नाय को सौंपना है जिस आम्नाय का यह मंदिर साबित हो। इसलिए यह महत्वपूर्ण निर्णय शीघ्र ही होंगे।
श्री पावापुरी तथा राजगृही तीर्थों की प्रबन्ध व्यवस्था जो बिहार जैन श्वेताम्बर बोर्ड द्वारा की जाती है और जिसमें दो भिन्न ट्रस्टों। श्री जैन श्वेताम्बर सोसायटी एवं जैन श्वेताम्बर भण्डार तीर्थ, मधुबन द्वारा इन तीर्थों का कब्जा किया गया है और उसमें संयोजक, राजस्थान जैन संघ के प्रयत्नों से बिहार के पब्लिक ट्रस्ट एक्ट के प्रावधानान्तर्गत “संघ'' की परिभाषा का संशोधन हुआ और संघ की परिभाषा शास्त्रों अनुसार मानी गई और आज तक उन तीर्थों की प्रबन्ध समिति का चुनाव दीपावली पर परंपरागत हुआ करता है ।
श्री महावीरजी तीर्थ । सवाई माधोपुर । में आया हुआ है उसमें दिगम्बर आम्नाय की प्रबन्ध व्यवस्था थी लेकिन ऐतिहासिक आधार पर यह श्वेताम्बर आम्नाय का मंदिर है।
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श्री नारायणलालजी पल्लीवाल ने इस तीर्थ को श्वेताम्बर तीर्थ जाहिर करने को दिवानी दावा किया है और वह अभी चल रहा है। श्री नारायणलालजी पल्लीवाल का स्वर्गवास हो चुका है और जो नई युवकों की समिति बनी है उसको सफलता मिलने की पूरी आशा है।
राजस्थान जैन संघ की स्थापना व संचालन में स्वर्गस्थ उपाध्याय श्री धर्मसागरजी महाराज साहब का विशेष हाथ रहा है और उनकी प्रेरणा व सहयोग के लिए यह संघ उपाध्याय श्री का बहुत आभारी है। राजस्थान जैन सघ की आज दो विशेष उपलब्धियां हैं :
___1-श्री केशरियाजी तीर्थ को जैन तीर्थ घोषित करवाने की और उसका वहीवट आम्नाय वाले संघ को सुपूर्द कराने की अोर ।
2-स्वामी वात्सल्य का द्रव्य भी धार्मिक द्रव्य है और उसका उपयोग किसी अन्य कार्य एवं मद के लिए नहीं किया जा सकता।
उल्लेखनीय है। पूज्य उपाध्याय श्री धर्मसागरजी महाराज साहब के स्वर्गवास से जैन संघ व समाज को तो भारी क्षति पहुंची है क्योंकि वे ही एक ऐसी ज्योति पुज थे जिनसे समाज, संघ व कार्यकर्ताओं को प्रकाश मिलता था और उस प्रकाश में संघ व तीर्थ के वहीवटदार अपना रास्ता ढूंढ लेते थे लेकिन राजस्थान जैन संघ को इससे अपूरणीय क्षति पहुंची है फिर भी
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राजस्थान जैन संघ को उन्होंने अपने पैरों पर खड़ा कर दिया है और उनके वरदहस्त के नीचे राजस्थान जैन संघ ने धूप-छांव देखी है जो इनका इतिहास बन गया है। पूज्य उपाध्याय श्री धर्मसागरजी महाराज साहब ने अपने जीवनकाल में राजस्थान जैन संघ की प्रवृतियों को भारत में तीर्थों के विविध पेचीदै मामलों में सहायता करने की प्रेरणा देने का कार्य सौंपा है और इसी वजह से इसका कार्य क्षेत्र राजस्थान ही नहीं रहकर पूरा भारत का क्षेत्र रहा है। पहले श्री राजगृहीं एवं पावापुरी तीर्थ। बिहार के आपसी मतभेदों को संघ ने निपटाया, इसी प्रकार मगरवाड़ा। मणिभद्र तीर्थ जो पालनपुर, जिला बनासकांठा के निकट है और जहां पर यति संप्रदाय की परम्परा रही है। इस तीर्थ का मामला सुलझाने के लिए संयोजक ने व्यक्तिगत रूप से रुचि लेकर कानूनी सलाह-सूचन देकर सुलझाने का प्रयत्न किया है लेकिन यतीजी की मानसिक विचित्रता के कारणं अभी तक मामला उलझा हुआ है और उसकी अपील गुजरात हाई कोर्ट में लम्बित है। "यतीजी का स्थानीय लोगों के साथ झगड़ा चलता है लेकिन आशा है कि यह मामला सुलझ जाएगा।
श्री देवगढ़ मदारिया में मंदिर, उराश्रय व यतीजी की कुछ जमीनें हैं वहां पर उक्त मामला तहसीलदार के साथ चल रहा था और उसके लिए श्री शंकरलालजी मुणोत ब्यावर वाले प्रयत्नशील रहे हैं और उस मदिर की व्यवस्था आदि कराने में
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राजस्थान जैन संघ की ओर से यथासम्भव सहायता की गई है। इसी प्रकार श्री चवलेश्वर तीर्थ का मामला है जिसमें भी दिगम्बरश्वेताम्बर का झगड़ा है और राजस्थान जैन संघ की ओर से कानूनी सलाह दी गई है । समय-समय पर श्री शंकरलालजी मुणोत वहां गये हैं और अभी भी कार्रवाई चल रही है और यह मामला अभी तक कोर्ट लम्बित है और अभी तक इसका
निर्णय नहीं हुआ है ।
पूज्य उपाध्याय श्री धर्मसागरजी महाराज साहब के स्वर्गवास के पश्चात् पूज्य प्रन्यास एवं उनके शिष्य श्री अभयसागरजी महाराज साहब ने पूज्य गुरुदेव के अधूरे कामों में रस लेना शुरू किया और समय-समय पर मार्गदर्शन भी दिया है और बिमारी के बावजूद भी अलभ्य सहयोग दिया । पूज्य श्री को हमेशा यही इच्छा रही है कि पूज्य धर्मसागरजी महाराज साहब ने जो उपलब्धियां संघ व समाज के लिये प्राप्त की और महत्वपूर्ण फैसले कराने में सहायभूत हुए उसका संकलन कर उनकी जीवनी एवं चरित्र के साथ-साथ प्रकाशित कराई जावे । उस उद्देश्य को मूर्तरूप देने के लिये कुछ रेकर्ड स संयोजक के पास भिजवाया है और कुछ रेकर्ड स उंझा स्थित उपाश्रय की आलमारियों में बन्द है । इस बीच पूज्य पन्यास प्रवर श्री अभयसागरजी महाराज साहब का स्वर्गवास दिनांक 26-11-86 को हो गया । आशा है उनके पाट परम्परा पर आये शिष्य श्री पन्यास प्रवर श्री अशोकसागरजी महाराज साहब एवं अन्य शिष्य मुनिराज उनका
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अनुकरण कर राजस्थान जैन संघ को सहयोग एवं मार्गदर्शन देंगे और उनके अधूरे कार्य को पूर्ण करने में सहायक होंगे।
भगवान श्री महावीर स्वामी मांसाहारी थे ? इस बाबत अनेकों बार इतिहासवेताओं द्वारा जैन धर्म एवं तीर्थकरों पर प्रहार किये गये। विशेषरूप से प्रो० ए० के० चटर्जी, कलकत्ता ने अपनी पुस्तक "ए कम्प्रीहेन्सिव हिस्टरी ऑव जैनिज्म" प्रकाशित की है और उन्होंने उसमें भगवान श्री महावीर स्वामी पर यह आरोप लगाया था कि "श्री महावीर मांसाहारी थे।" उसके लिए संयोजक ने श्री विजयसिंहजी नाहर, भूतपूर्व मंत्री, बंगाल तथा प्रोफेसर श्री ए० के० चटर्जी से सम्पर्क किया और उनका तथ्यों की ओर ध्यानाकर्षित किया और उसके लिए श्री चटर्जी ने अपनी पुस्तक में उचित संशोधन करने का आश्वासन दिया। इस सम्बन्ध में श्री हीराचंदजी जैन, अध्यक्ष, महावीर जैन सभा, मांडवला की ओर से भी उचित सहयोग मिला। इसके साथ-साथ मध्यप्रदेश की पाठ्य पुस्तकों में जीव हिंसा को प्रोत्साहित करने सम्बन्धी कई अध्याय छपे जिनमें जीव हिंसा का प्रचार था। अण्डे, मछली, मांस आदि के सेवन का प्रतिपादन किया गया था जिसके विरुद्ध भी पत्र-व्यवहार किया जाकर मध्यप्रदेश के शिक्षा सचिव से उचित संशोधन पाठ्य पुस्तकों में कराने में सफलता प्राप्त की। इसमें विशेष रूप से श्री नव जीव दया मण्डल, दिल्ली एवं मध्यप्रदेश अहिंसा
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प्रचारक संघ तथा महावीर जैन सभा, मांडवला का उल्लेखनीय योगदान प्राप्त हुआ।
राजस्थान प्रदेश में अनोपमण्डल द्वारा भी जैन समाज व जिन धर्म के प्रति वेमनस्यता की कई प्रवृतियां हुई जैसे साधुमुनिराजों के साथ मारपीट [कोलरगढ़ काण्ड] तथा तखतगढ़ काण्ड जिसमें भी जैन संस्कृति रक्षक समिति की ओर से पत्र व्यवहार केन्द्रीय मंत्रियों एवं प्रदेश के अधिकारियों के साथ हुआ और उसमें सफलता भी मिली। इसके परिणाम स्वरुप ही अनोपमण्डल की प्रवृत्तियों में कमी आई है। कहीं-कहीं दूर-दराज छोटे-छोटे गांवों में इस तरह के असामाजिक तत्व सक्रिय होते हैं फिर भी इनको निष्प्रभावी कर दिया गया है। इस सम्बन्ध में परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागर सूरीश्वरजी महाराज साहब का मार्गदर्शन एवं उल्लेखनीय योगदान प्राप्त हुआ है जिसके लिए राजस्थान जैन संघ उनके प्रति नतमस्तक है।
शिक्षा के क्षेत्र में भी राजस्थान जैन संघ का योगदान रहा है। इस सम्बन्ध में डॉ० के० प्रार० चन्द्रा, अध्यक्ष, प्राकृत एवं पाली भाषा, गुजरात विश्वविद्यालय को सहयोग दिया गया है तथा राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली से इन भाषाओं के अध्ययन के लिए ही छात्रवृत्ति दी जाती थी।
महाराष्ट्र राज्य में प्रन्यासों पर लागू होने वाले कॉमन गुड फण्ड नामक एक विधेयक महाराष्ट्र विधानसभा में पेश हुआ
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जिसका विरोध अन्य संस्थाएँ साथ मिलकर किया गया और वह विधेयक स्थगित हुआ। इसमें परम पूज्य गणिवर्य श्री कल्याण सागरजी महाराज साहब ने काफी रुचि ली और मार्ग दर्शन दिया।
श्री केशरियाजी तीर्थ के भंडार से भंडारियों को जो 3 प्रतिशत हिस्सा दिया जाता है वह बन्द करवाने के लिए प्रयत्न किए गए। उसके लिए प्रशासनिक स्तर पर कारवाई की गई तथा मुन्सिफ कोर्ट, उदयपुर में इसे रुकवाने का इंजक्शन हासिल किया गया है जिससे भंडारियों को भंडार से मिलने वाला 34 प्रतिशत आय का हिस्सा रोक दिया गया है। अभी यह मामला कोर्ट में लम्बित है उस विषय में उन्होंने हाई कोर्ट में रीट कर रखी है और वह अभी लम्बित है और इधर मुन्सिफ कोर्ट में दावे पेन्डिग है।
श्री केशरियाजी तीर्थ के मूलनायक श्री ऋषभदेव भगवान की प्रतिमा का विलेपन कराने के लिए राजस्थान सरकार के तत्कालीन मंत्री से स्वीकृति प्राप्त की थी जिस पर दिगम्बर
आम्नाय द्वारा विरोध करने का हाई कोर्ट में वाद प्रस्तुत किया गया जिसे खारिज करा दिया गया लेकिन पुजारियों द्वारा उदयपुर के न्यायालय में जो वाद प्रस्तुत किया गया जो अभी तक लम्बित होने के कारण विलेपन का काम अभी तक सम्पन्न नहीं हुआ है।
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नाडलाई (जिला-पाली) में कुछ असामाजिक तत्वों ने वहां पहाड़ पर स्थित मंदिरजी में मूर्ति की क्षति पहुंचाई और उपद्रव किये उस विषय में भी राजस्थान जैन संघ एवं जैन संस्कृति रक्षक समिति, सिरोही की ओर से संयोजक ने कार्रवाई की तथा उचित पत्र-व्यवहार भी मन्त्रियों एवं उच्चाधिकारियों से किया
और उसमें सफलता मिली। श्री चुन्नीलाल जी, एडवोकेट का इस बारे में पूर्ण सहयोग रहा है और प्रयत्नशील रहे हैं।
कोलरगढ़ काण्ड के वक्त जैन संस्कृति रक्षक समिति का गठन हुआ और उस समय से उक्त समिति द्वारा समय-समय पर दिल्ली-जयपुर आदि स्थानों पर जाकर व्यक्तिगतरूप से अथवा सामूहिक रूप से कार्रवाई की गई और आज भी जैन संस्कृति एवं कला पर होने वाले आघातों एवं आक्षेपों का मुकाबला इस संस्था द्वारा किया जाता है।
सनवाड़, जिला उदयपुर में स्थानकवासी समाज व तेरापंथी समाज के बीच मतभेद उभरे और मंदिर एवं धर्मशाला आदि के ताले तोड़ने एवं नये निर्माण आदि की वारदातें हुई जिस पर संयोजक ने अपने व्यक्तिगत स्तर पर उदयपुर के कार्यकर्ताओं के साथ सम्पर्क कर सलाह-सूचन देकर समाधान कराने का प्रयत्न किया है और उसमें कुछ हद तक सफलता हासिल हुई।
संयोजक ने माण्डोली (शान्तिविजयजी गुरू मंदिर) तथा भाण्डवपुर तीर्थ तथा सुधर्मास्वामी विद्यापीठ, मानपुर के
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कार्यकर्त्ताओं को सलाह- सूचन एवं मार्गदर्शन दिया तथा आज भी दिया जा रहा है ।
डॉ० रामसिंह यादव, 14 उर्दू पुरा, उज्जैन ने साप्ताहिक हिन्दुस्तान के संस्करण दिनांक 2 नवम्बर, 86 में भगवान महावीर स्वामी पर विक्रान्त भैरव की साधना करने का आरोप लगाया था उक्त आरोप "तान्त्रिक यहां आकर साधना करते हैं" शीर्षकान्तर्गत छपा तथा, जिसके लिये संयोजक ने जैन संस्कृति रक्षक समिति की ओर से प्राचार्य श्री चन्द्रसागरसूरि जैन ज्ञान मंदिर, उज्जैन के कार्यकर्त्ताओं के माध्यम से डॉ० रामसिंह यादव से सम्पर्क किया और उन्हें सूचित किया कि उक्त लेख इतिहास सम्मत नहीं है और इससे जैन समाज व धर्म पर कुठाराघात हुआ है। चूंकि भगवान श्री महावीर स्वामी तीर्थंकर थे और उन्हें विक्रान्त भैरव की साधना की कोई आवश्यकता नहीं थी । परिणामस्वरूप श्री यादव ने खेद - पत्र तथा स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने अपने भ्रमपूर्ण लेखन के लिये समग्र जैन समाज से क्षमा याचना की ओर उक्त अंश को उक्त लेखन से निरस्त किया |
सर्व हितकारक संघ, बम्बई के कार्यकर्त्ता श्री अरविन्द भाई पारख से संयोजक का सम्पर्क हुआ और उनके साथ विविध विषयों पर सलाह-सूचना, मार्गदर्शन एवं पत्र व्यवहार किया जाकर सहयोग दिया गया । श्री पारख के माध्यम से क्रॉस ब्रीडिंग, कत्लखाने बन्द करवाने, खेती सम्बन्धी मामलों में,
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छिछली नदियों की खुदाई कराने तथा अन्य हिंसा विरोधी कार्यक्रमों में भाग लिया एवं सहयोग दिया गया। इसके लिये समयसमय पर केन्द्रीय मंत्रियों एवं मंत्रालयों से व्यवहार किया गया और उससे आशा बंधी तथा विभिन्न कार्यकर्ताओं विशेष रूप से विख्यात चिंतक श्री वेणीशंकर मुरारजौ वासु, बम्बई से सम्पर्क एवं वार्तालाप किया गया तद्नुसार महाराष्ट्र हाईकोर्ट में गौ हत्या के विरुद्ध एक याचिका भी दायर की गई जिसमें महाराष्ट्र एनीमल प्रीजर्वेशन एक्ट के प्रावधानों को चुनौतो दी गई है तथा इस सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट में अपील के तौर पर याचिका प्रस्तुत करने का विचार माह जून, 87 में है।
समग्र जैन समाज सवंत्सरी एक ही तिथि को मनावे इस सम्बन्ध में संयोजक ने समाज के बड़े-बड़े आचार्यों एवं विद्वानों तथा संघ के आगेवानों से सम्पर्क किया और इस सम्बन्ध में एक निर्णय लेकर समग्र जैन एकता के लिए प्रयत्न किए। परम पूज्य आचार्यदेव श्री 1008 श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज साहब [डहेलावाले प्राचार्यदेव श्री 1008 श्री भेरूप्रभसागर सूरीश्वरजी महाराज साहब तथा अन्य प्राचार्यों से व्यक्तिगत रूप से पत्र-व्यवहार किया किन्तु प्रात्म-प्रतिष्ठा के नाते कोई निराकरण नहीं हो सका। इस सम्बन्ध में श्री किशोरचंद्र एम० वर्धन, बम्बई, श्री जौहरीमलजी पारख, जोधपुर तथा श्री लालचंदजी, छगनलालजी शाह, पिण्डवाड़ा वालों का सराहनीय सहयोग प्राप्त हुआ।
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राजस्थान जैन संघ की तरफ जिला स्तर पर सिरोही जिला जैन संघ की स्थापना की गई है और उसके मुख्य उद्देश्य राजस्थान सार्वजनिक प्रन्यास अधिनियम के अन्तर्गत संस्थाओं, प्रन्यासों को उचित मार्गदर्शन एवं सलाह-सूचना देकर उन्हें उक्त कानून के अन्तर्गत पंजीयन कराने में सहायता देना है। इस समिति में सिरोही जिले के निवासी ही सदस्य हैं।
राजस्थान जैन संघ की कार्रवाईयां एवं प्रवृत्तियों में विशेष रूप से सर्वश्री अचलमलजी मोदी, श्री लालचन्दजी मोदी, तथा अर्थ संयोजक श्री ताराचंदजी भण्डारी का उल्लेखनीय योगदान प्राप्त हुआ है। दुर्भाग्यवश इन कार्यकर्तामों का देवहासान हो गया। राजस्थान जैन संघ उनकी सेवाओं से उऋण नहीं हो सकता। राजस्थान संघ को इनके स्वर्गवास से अपूरणीय क्षति पहुंची है।
श्री अगरचंदजी नाहटा का भी राजस्थान जैन संघ को समय-समय पर महत्वपूर्ण सहयोग एवं मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है आज श्री नाहटा हमारे बीच नहीं हैं किन्तु उनकी सेवाओं के लिए राजस्थाय जैन संघ उनका आभारी है।
परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब ने अनोपमण्डल के घृणात्मक प्रवृत्तियों के विरुद्ध राजनैतिक स्तर पर प्रभावी कार्य कर एवं मार्गदर्शन देकर सहयोग प्रदान किया है तथा जिससे संघ को इनकी कार्रवाईयों को
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नियंत्रित करने में काफी हद तक सफलता प्राप्त हुई है। राजस्थान जैन सघ इसके लिए आचार्य श्री के प्रति विशेष रूप से हार्दिक आभार प्रकट करता है।
परम पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज साहब की तरफ से विविध विषयों एवं गूढ मसलों पर मार्गदर्शन, सलाह एवं सहयोग प्राप्त होता रहा है आज भी वे देने के लिए कृत संकल्प हैं जिसके लिये राजस्थान जैन संघ उनका हार्दिक आभार प्रकट करता है और आशा करता है कि भविष्य में भी पूज्य आचार्य श्री का इसी तरह वरदहस्त राजस्थान जैन संघ पर रहेगा।
वर्तमान में राजस्थान जैन परिषद् के कार्यकर्ताओं के रूप में सर्व श्री जौहरीमल जी पारख, जोधपुर, श्री वल्लभराज जी कुम्भट. जोधपुर एवं श्री लेखराज जी मेहता, जोधपुर तथा जैन संस्कृति रक्षक सभा के महामंत्री श्री शंकरलाल जी मुणोत, ब्यावर तथा उदयपुर श्री संघ के कार्यकर्ता श्री कन्हैयालाल जी जैन, श्री वीरचन्द जी सिरोया, श्री चतुरसिंह जी गोड़वाड़ा एवं श्री गणेशलाल जी पुजावत का सहयोग प्राप्त हो रहा है। संघ उनकी निस्वार्थ सेवाओं की अनुमोदना करता है और भविष्य में उनके सहयोग की अपेक्षा करता है।
राजस्थान जैन संघ को प्रत्येक कार्यवाही एवं प्रवृत्तियों में सेठ कल्याण जी परमानन्द जी पेढ़ी, सिरोही के स्टॉफ का पूरा
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योगदान रहा है और उनकी निःशुल्क सेवाओं के लिए राजस्थान जैन संघ हार्दिक आभारी है। पेढ़ी के पदाधिकारी ने भी सलाह सूचन एवं सहयोग समय-समय पर देकर संयोजक का उत्साहवर्धन किया है जिसके लिये संघ उनके प्रति अपना हार्दिक आभार प्रकट करता है।
___ जैन संस्कृति के रक्षार्थ, जिन मंदिरों के जीर्णोद्धार, धार्मिक प्रशिक्षण की व्यवस्था आदि कार्यों में श्री नाकोड़ा ट्रस्ट द्वारा जो योगदान दिया जा रहा है उस हेतु संघ इस ट्रस्ट के सदस्यों व अध्यक्ष श्री सुल्तानमल जी जैन के प्रति आभार प्रदर्शित करता है और इस क्षेत्र में और अधिक व्यापक कार्य करने की अपेक्षा करता है।
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श्री राजस्थान जैन संघ, सिरोही प्राय व्यय का विवरण सन् 76-77 से 86-87
आय
वर्ष 76-77
4611-08
4795-24 2942-73 चंदा खाते 720-60 यात्रा व्यय 101-00 प्रवेश शुल्क के 170-83 पोस्टेज फोन
वगैरह 1567-35 ब्याज के ज न, 3903-81 अन्य कागज 72 से सित.
छपाई 76 तक
वगैरह
4611-08
4795-24
वर्ष 77-78
455-02
210-10
101-00 चंदा खाते 354-02 ब्याज के
278-10 . 171-05 यात्रा व्यय
29-55 पोस्टेज फोन 77-55 अन्य कागज
455-02.
278-10
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7143-03
5651-30
935-25
5001-00 भेंट
2142 - 03 ब्याज के
7143-03
वर्ष 78-79
5651-30
5000-00 भेंट
651-30 ब्याज के
935-25
वर्ष 79-80
332-70
935-25 ब्याज के
वर्ष 80-81
643-60
151-00 यात्रा व्यय
90-65 पोस्टेज फोन
91-05 अन्य
332-70
( २८ )
428-45 यात्रा व्यय
63-40 पोस्टेज फोन
151-75 अन्य
643-60
927-80
817 -15 यात्रा व्यय 110-65 पोस्टेज फोन
927-80
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1042-45
वर्ष 81-82
3744-50 1042-45 ब्याज के 588-00 यात्रा व्यय
156-50 पोस्टेज, फोन 3000-00 अन्य, वकील
... फीस
1042-45
3744-50
-
प्राय
वर्ष 82-83 व्यय 3951-90
821-80 3000-00 खर्च खाता 479-80 यात्रा व्यय
वकोल फीस
के जमा 142-00 पोस्टेज, फोन 951-90 ब्याज के .-200-00 अन्य छपाई 3951-90
821-88
-
-
1092-16
वर्ष 83-84
723-60 50-00 चंदा खाते 665-60 यात्रा व्यय
1042-16 ब्याज के
30-00 पोस्टेज, फोन 28-00 अन्य 723-60
M
1092-16
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1086-60
1060-40
1131-00
1086 - 60 ब्याज खाते
1086-60
वर्ष 84-85
1060-40
233-00
1131-00
वर्ष 85-86
1060 -40 ब्याज खाते
890-45
वर्ष 86-87
1131 -00 ब्याज खाते
156-00 यात्रा व्यय के
7700 पोस्टेज, फोन
233-00
514-70
( ३० )
344 - 50 यात्रा व्यय के
319-30 पोस्टेज, फोन 226-65 अन्य छपाई
890-45
410-00 यात्रा व्यय के 89-70 पोस्टेज, फोन
15-00 अन्य
514-70
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प्रोसिडिग्स
राजस्थान जैन संघ की ओर से राजस्थान जैन संघ सम्मेलन का आयोजन दिनांक 31-5-87 व 1-6-87 को देलवाड़ा तीर्थ, आबूपर्वत के प्रांगण में प्रसिद्ध संगीतकार श्री हीराभाई देवीदास ठक्कर द्वारा मंगलाचरण प्रस्तुति के साथ श्री पुखराज जी सिंघी, अध्यक्ष, राज० जैन संघ की अध्यक्षता में प्रारम्भ
हुआ।
सम्मेलन का उद्घाटन राजस्थान के राज्यपाल श्री वसन्तराव जी पाटिल करने वाले थे लेकिन देश के नेता श्री चरणसिंह चौधरी का स्वर्गवास हो जाने से उद्घाटन समारोह महामहिम राज्यपाल महोदय द्वारा नहीं किया जा सका और सम्मेलन की सफलता के लिये निम्न सन्देश प्राप्त हुआ:
संदेश मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि राजस्थान जैन श्री संघ सम्मेलन का आयोजन आबूपर्वत पर दिनांक 31 मार्च, 1987 को हो रहा है।
राजस्थान में जैन समाज एक पढ़ा लिखा वर्ग है। उसमें सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक जागृति है । वह समाज सेवा के क्षेत्र में जैसे अकाल एवं बाढ़ के समय मानव तथा जीवों की
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सेवा निरन्तर करता रहता है। यह सब जैन धर्म के ठोस सिद्धान्तों-अहिंसा, त्याग और अपरिग्रह आदि के व्यक्तिगत जीवन में सरल और सहज अभ्यास से सम्भव प्रतीत होता है। मैं सम्मेलन की सफलता के लिये मंगल कामना करता हूं।
वसन्तराव पाटिल
उक्त सन्देश श्री लेखराज जी मेहता ने सदन को पढ़कर सुनाया और तत्पश्चात् श्री सुल्तानमल जी जैन, अध्यक्ष नाकोड़ा तीर्थ द्वारा सम्मेलन का उद्घाटन किया गया। उद्घाटन के उद्बोधन में श्री सुल्तानमल जी जैन ने जैन संघों, संस्थाओं एवं विभिन्न संस्थाओं को संगठित होने के लिए आग्रह किया और उन पर आने वाले संकटों का निवारण करने हेतु संगठन की आवश्यकता पर बल दिया। उद्घाटन भाषण के पश्चात् श्री लालचंदजी छगनलाल जी शाह, पिंडवाड़ा वालों ने परम पूज्य आचाय भगवन्त श्री 1008 श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज साहब का सन्देश पढ़कर सुनाया। संदेश में प्राचार्य श्री ने सम्मेलन की सफलता हेतु आशीर्वाद दिया और जैन संस्कृति की रक्षार्थ बाल दीक्षा के सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत की गई रीट याचिका का विरोध करने के लिए सम्मेलन से अपेक्षा की।
__ इसके उपरांत अध्यक्ष महोदय ने अपने अध्यक्षीय भाषण के अतिरिक्त पूज्य उपाध्याय श्री धर्मसागरजी महाराज साहब के
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प्रेरणादायक सहयोग के लिये सराहना की तथा राजस्थान जैन संघ के सन् 56 से लगाकर सन् 87 तक की उपलब्धियों के बारे में चर्चा को और राजस्थान पब्लिक ट्रस्ट एक्ट, केन्द्रीय ट्रस्ट बिल तथा अन्य समाज विरोधी आपत्तिजनक प्रवृत्तियों के विरुद्ध जो कार्रवाईयां की गई उसका विवरण प्रस्तुत किया जिसमें श्री सम्मेदशिखरजी, राजगृही, चवलेश्वर, देवगढ़, प्रासिंद आदि कई तीर्थों संबंधी विवरण प्रस्तुत किये जिनको सदन ने बहुत ही ध्यानापूर्वक सुना और उसकी अनुमोदना की।
राजस्थान जैन संघ द्वारा इस सम्मेलन में विभिन्न जैन संस्थाओं जिनके संयोजक श्री पुखराज जी सिंघी के व्यक्तित्व के साथ अध्यक्ष के नाते सम्बन्ध रहा है उन विभिन्न संस्थानों को प्रवृत्तियों का भी विवरण दिया और सगठन का कार्य मजबूत स्तर पर चलाया जा सके और उसका प्रस्ताव एवं स्वरूप क्या हो? उस विषय में श्री भूरचंदजी जैन, बाड़मेर, श्री जौहरोमलजी पारख, जोधपुर श्री चतुरसिंह जी गोड़वाड़ा, उदयपुर, श्री चम्पालाल जी सालेचा, श्री सुशीलकुमार जी छजलानी, जयपुर, श्री बाबूमल जी मुता, सिरोही, श्री लेखराज जी मेहता, जोधपुर, श्री मूलचंदजी, लुणावा, श्री सुकनजी बापना, पोसालिया, श्री शंकरलाल जी मुणोत, ब्यावर श्री लालचंद जी शाह, पिंडवाड़ा, श्री शांतिकुमार जी सिंघवी, जयपुर तथा श्री हीराचंद बैध, जयपुर ने चर्चा में भाग लिया और कई रचनात्मक सुझाव दिये। जिसके पश्चात् अध्यक्ष महोदय श्री सिंघी ने सारे विचारों
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का स्वागत व समन्वय करके एक निर्णय लिया कि संगठन के विधान में यदि कोई सुधार व संशोधन अपेक्षित हो तो वह किया जाकर इसको व्यापक स्वरूप देने के लिए एक 21 सदस्यों की समिति का गठन किया जावे जो एक वर्ष की समयावधि में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करे लेकिन वह समिति वर्तमान में राजस्थान जैन सघ की कार्यकारिणी के तौर पर कार्य करेगी और संस्था की विभिन्न प्रवृत्तियों तथा सम्मेलन द्वारा पारित प्रस्तावों को क्रियान्वित करने की कार्रवाई करेगी और जब तक संगठन का कोई स्वरूप नहीं बनता तब तक सम्मेलन की प्रवृत्तियों एवं वर्तमान विधान यथावत् प्रभावी रहेंगे और उसके अन्तर्गत की गई कार्यवाही मान्य होगी। सम्मेलन में उपस्थित डेलीगेट्स ने अध्यक्ष को अधिकृत किया कि वे सम्मेलन की दूसरी बैठक रात्रि में शुरू होने के पहले इस समिति की कायकारिणी बनाकर घोषित कर दे। इसके साथ ही सम्मेलन का पहला सत्र 5-15 बजे समाप्त हुआ।
उसके पश्चात् सम्मेलन की दूसरी बैठक रात्रि के 8.30 बजे शुरू हुई रात्रि के करीब 11.00 बजे तक चली। उक्त सत्र में अध्यक्ष महोदय ने कार्यकारिणी की नामावली घोषित की। उसके साथ-साथ विशेष आमन्त्रित समिति का भी गठन कर उनकी नामावली घोषित की। इस तरह अध्यक्ष महोदय द्वारा घोषित किए गए नामों का उपस्थित प्रतिनिधियों द्वारा स्वागत किया गया।
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रात्रि बैठक में एक प्रस्ताव पूज्य प्राचार्यदेव श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज साहब के संदेश की अनुपालना में पारित किया गया कि सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत रीट याचिका में सम्मेलन द्वारा गठित समिति इन्टरवेन्शन करे और जैन संस्कृति ब शास्त्रीय प्रावधानों पर होने वाले प्रहारों का निवारण निराकरण करने के लिए कार्रवाई करे। दूसरा सत्र रात्रि को 12.00 बजे विसर्जित हुआ।
सम्मेलन की दिनांक 1-6-87 को पहली बैठक सुबह 9.00 बजे शुरू हुई और उसमें सम्मेलन में आये हुए सुझावों का विवरण श्री कालूलाल जी जैन, उदयपुर द्वारा पढ़ा गया और सुझावों पर यह निर्णय हुआ कि जिन विषयों पर सम्मेलन में प्रस्ताव पारित हुए हैं उन पर कार्यकारिणी समिति उचित कार्रवाई करे और अन्य सुझावों पर विचार विनिमय कर उचित कदम उठावे । ___सत्र में राजस्थान जैन संघ की सन् 76 से 87 तक की संक्षिप्त रिपोर्ट पढ़ी गई जिसे सदन ने स्वीकार किया। सत्र में श्री महावीरजी तीथ, चवलेश्वर तीर्थ एवं श्री केशरियाजी तीर्थ के सम्बन्ध में प्रस्ताव पारित किए और विधिवेताओं से निवेदन किया गया कि इस सम्बन्ध में उन्हें वांछित सहयोग प्रदान करें। विशेष रूप से मंदिर, स्थानकों के विषय में प्रबन्ध व्यवस्था के सम्बन्ध में एक समिति का गठन किए जाने बाबत का प्रस्ताव पारित किया। इसी प्रकार पुरातत्व महता के स्थानक, मंदिर, पुरावशेष के बारे में सर्वेक्षण किया जाकर उसका संकलन किये जाने के बारे में भी विचार विनिमय किया।
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सम्मेलन में अनोपमण्डल की आड़ में कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा जैन समाज के विरुद्ध भ्रामक एवं घृणात्मक प्रवृत्तियों को रोकने के लिए राज्य सरकार का ध्यानाकर्षित करने को एक प्रस्ताव पारित किया और प्रतिबंधित साहित्य का पुर्नजीवन न हो उसके लिए सतर्कता बरतने को राज्य सरकार को निवेदन किया । ___ सम्मेलन का संचालन कार्य श्री कालूलाल जी जैन उदयपुर ने किया जिसके लिए उपस्थित डेलीगेट्स की ओर से उनकी सराहना की गई और उन्हें धन्यवाद ज्ञापित किया।
सम्मेलन में उपस्थित प्रतिनिधियों का तथा आज तक राजस्थान जैन संघ द्वारा को गई कार्रवाईयां और संघ की प्रवृत्तियों में उनके द्वारा दिये गये सहयोग के लिए अभिनन्दन किया गया। अध्यक्ष महोदय को श्री लेखराज जी मेहता ने धन्यवाद देते हुए उनसे अपील की कि वे रीढ़ की हड्डी के माफिक जो काय संचालन आज पर्यन्त करते रहे हैं आगे भी पूर्णतः समय देकर के संचालन करते रहें। इस कार्य में संघ का प्रत्येक व्यक्ति आपको पूर्ण सहयोग देने का संकल्प करता है। __उसके पश्चात् राजस्थान जैन संघ के प्रेरणा स्त्रोत स्वर्गीय उपाध्याय श्री धर्मसागर जी महाराज साहब तथा आचार्य श्री कैलाशसागर जी महाराज साहब के पनेरणादायक सहयोग के लिए आभार उपस्थित डेलीगेट्स मे प्रकट किया और दिवंगत आत्मा की शांति के लिए शृद्धांजलि अर्पित की। इसके साथ ही साथ दिवंगत कार्यकर्ताओं के प्रति भी शृद्धांजलि अर्पित की। तत्पश्चात् नवकारमंत्र के साथ सम्मेलन समाप्ति की घोषणा की।
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प्रस्ताव
राजस्थान जैन श्री संघ सम्मेलन को ज्ञात हुआ है कि देश के सर्वोच्च न्यायालय में एक महाशय ने रीट बाबत अल्पवयस्क बालकों को जैन धर्म में साधु व साध्वी के रूप में दीक्षित किया जाता है वह समाज व देश की उन्नति में बाधक है और मानवीय दृष्टिकोण से घातक है इसलिये इस पर रोक लगाने के लिये प्रस्तुत हुई ।
अतः सम्मेलन यह महसूस करता है कि सुप्रीम कोर्ट में जो उक्त रीट प्रस्तुत हुई है उससे जैन शास्त्रों में उल्लेखित सिद्धान्तों व जैन संस्कृति का अवमूल्यन करने के लिये एक प्रयत्न है जिसका यह सम्मेलन पुरजोर शब्दों में विरोध करता है और यह निर्णय करता है कि उक्त रोट में इस संस्था द्वारा इन्टरवेन्शन किया जाय तथा एक समिति का गठन किया जावे ।
अध्यक्ष की ओर से,
राजस्थान पब्लिक ट्रस्ट एक्ट के चेप्टर 10 को लागू हुए 25 वर्ष हो गये हैं एवं सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जैन मंदिर घोषित करने के निर्णय हुए 14 वर्ष हो जाने के पश्चात् भी राज्य सरकार श्री केशरियाजी जैन श्वेताम्बर मंदिर, धुलेवा की ट्रस्ट की धारा 53 के अन्तर्गत कार्रवाई नहीं कर रही है ।
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अतः राज्य सरकार से यह सम्मेलन मांग करता है कि उपरोक्त धारा 53 के अनुसार शीघ्र कार्रवाई की जावे और मंदिर का प्रबन्ध जैन श्वेताम्बर सदस्यों की कमेटी को सुपुर्द किया जावे ।
अनुमोदक समरथसिंह मेहता
उदयपुर
-- प्रस्तावक,
कन्हैयालाल जैन
T उदयपुर
प्रस्तावक,
सुल्तानमल जैन
बाड़मेर
समर्थक;
भूरचन्द जैन
बाड़मेर
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राजस्थान प्रदेश की जैन कला, संस्कृति की रक्षा करने, जैन एकता को संग्रहित करने एवं धार्मिकता को सजीव बनाये रखने के लिये राजस्थान जैन संघ, राजस्थान जैन फाउण्डेशन एवं राजस्थान जैन परिषद् के सभी संस्थापकों, सस्दयों एवं कार्यकर्ताओं ने अब तक जो तन, मन एवं धन से, लगन एवं निष्ठा से योगदान दिया है। उनका आज दिनांक 1-6-87 को माऊंट आबू पर आयोजित राजस्थान जैन श्री संघ सम्मेलन के अवसर पर हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं ।
लेखराज मेहता जोधपुर
सोहनलाल बोथारा बाड़मेर
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श्री चवलेश्वर जैन श्वेताम्बर तीर्थ का संरक्षरण करने के लिये जो कानूनी प्रयास श्री जैन श्वेताम्बर तीर्थ रक्षा कमेटी एवं निर्माण समिति भीलवाड़ा द्वारा किये जा रहे हैं वें प्रशंसनीय हैं और उन्हें अपने प्रयास में सफलता प्राप्त हो उसके लिये यह सम्मेलन, विविध संघों, दानदाताओं तथा विधिवेताओं से अनुरोध करता है कि इसमें सहयोग देवें ।
अनुमोदक, विनोदकुमार सोलंकी सिरोही
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अनुमोदक, सुशील कुमार छजलानी
जयपुर
राजस्थान में अनेक तीथ एवं ऐतिहासिक स्थान विद्यमान है और कई तीर्थों व ऐतिहासिक शिलालेख व एण्टीक्यूटीज के प्रमारण उपलब्ध हैं उसका संकलन इतिहास व संस्कृति की दृष्टि से तथा राष्ट्रीय हित में आवश्यक है और वांछनीय प्रतीत होता है | अतः यह सम्मेलन संघों, इतिहासकारों एवं पुरातत्ववेताओं से इस योजना को कार्यान्वित करने के लिये निवेदन करता है ।
प्रस्तावक,
तेलमल शाह
भण्डार
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प्रस्तावक,
भूरचन्द जैन
बाडमेर
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राजस्थान में जैन मंदिर व उपाश्रय, स्थानक आदि अनेक धार्मिक स्थल विद्यमान हैं लेकिन कतिपय स्थान परित्यक्त हैं और कई स्थानों पर पूजा आदि की व्यवस्था नहीं है और कई स्थानों पर सम्पत्ति को क्षति हो रही है । यह स्थिति किसी भी दृष्टि से वांछनीय नहीं है और खेदजनक है ।
यह सम्मेलन महसूस करता है कि उपरोक्त वणित स्थिति में मंदिरों व संघ की सम्पत्ति की सुरक्षा व सुव्यवस्था के लिए एक समिति का गठन किया जावे। समिति आवश्यक समझे
तो क्षेत्रीय उप समितियों का भी गठन करे ।
अनुमोदक, उगमसी मोदी
जालोर
प्रस्तावक,
मूलचन्द
लुणावा
सवाई माधोपुर जिले में श्री महावीरजी तीर्थ आया हुआ है और यह जैन श्वेताम्बर पल्लीवाल क्षेत्र में स्थित है । इस तीर्थ में मूलनायक श्री महावीर स्वामी की लाल पाषाण की प्रतिमा है जिसको श्री जोधराज जी पल्लीवाल ने सम्वत 1926 में प्रतिष्ठित कराया था और मंदिर व कटले का निर्माण कराया था । इस तीर्थ को श्वेताम्बर तीर्थ घोषित कराने के लिए श्रीमान् नारायणलाल जी पल्लीवाल ने न्यायालयों में केस किये हुये हैं जो लम्बित हैं और अभी कार्रवाई श्री जैन श्वेताम्बर महावीर जी तीर्थ रक्षा समिति, जयपुर द्वारा की जा रही है ।
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यह सम्मेलन महावीरजी तीर्थ जैन श्वेताम्बर आम्नाय का है ऐसी मान्यता है और तीर्थ की रक्षा के लिए जो रक्षा समिति द्वारा प्रयत्न किये जा रहे हैं उसकी सराहना करता है और श्री संघों से निवेदन करता है कि उन्हें हर प्रकार का सहयोग प्रदान करावें ।
अनुमोदक, शंकरलाल मुणोत
ब्यावर
प्रस्तावक,
के. एल. जैन
उदयपुर
राजस्थान जैन संघ के प्रणेता उपाध्याय श्री धर्मसागरजी महाराज साहब तथा पन्यास प्रवर श्री अभयसागरजी महाराज साहब तथा प्राचार्य भगवन्त श्री कैलाशसागरजी महाराज साहब का स्वर्गवास होने से उनके प्रति यह सम्मेलन अपनो श्रद्धांजलि अर्पित करता है और उन्होंने अपनी प्रेरणा से इस संस्था का पथ-प्रदर्शन किया है उसके लिए आभार प्रकट करता है। ईश्वर उन दिवंगत श्रात्मानों को शांति प्रदान करे श्रौर संघों को उनकी क्षति वहन करने की शक्ति प्रदान करे ।
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अध्यक्ष की ओर से,
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राजस्थान में सामाजिक व धार्मिक कार्यकर्ताओं ने अपनी सेवा अर्पित कर मैन संस्कृति की रक्षा ही नहीं की परन्तु प्रन्यासों की सम्पत्ति व संघ संगठनों को मजबूत बनाने के काफी प्रयत्न किये हैं। ऐसे हमारे सहयोगी कार्यकर्ताओं का स्वर्गवास हो गया है उनके निम्न नाम उल्लेखनीय हैं :
1-श्री अचलमल जी मोदी 2-श्री लालचंद जी मोदी 3-श्री अजयराज जी मोदी 4-श्री ताराचंद जी भंडारी 5-श्री अगरचंद जी नाटा 6-श्री नारायणलाल जी पल्लीवाल 7-श्री उम्मेदमल जी खोडा 8-श्री सोहननाथ जी, भूतपूर्व हाईकोर्ट जज़ 9-श्री सम्परान जी भंडारी
एवं अन्य मुख्य कार्यकर्ताओं के प्रति यह सम्मेलन शृद्धांजलि अर्पित करता है तथा ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे।
अध्यक्ष की ओर से,
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कार्यकारिणी-समिति
1-श्रीमान् पुखराज जी सिंघी -अध्यक्ष, सिरोही 2- " शांतिलाजी मरडिया -जोधपुर-अध्यक्ष,तपागच्छ
संघ, भैरू बाग तीर्थ। 3- " सुशीलकुमारजी छजलानो -जयपुर, मंत्री, प्रात्मानंद
सभा " पारसमलजी भंसाली -प्रतिनिधि अध्यक्ष,
नाकोड़ा तीर्थ " बुधसिंहजी बापना -जेसलमेर, तीर्थ कमेटी " घरमचंदजी सिंघवी -कोटा
मोहनराजजी भंडारी -अजमेर " कन्हैयालालजी जैन -उदयपुर-मंत्री, केशरिया
नाथ तीर्थ कमेटी, आदे
श्वर कॉलोनी, उदयपुर । 9- " सोहनलालजी बोथरा -बाड़मेर 10- " विनोदकुमारजी सोलंकी -सिरोही, अजितनाथजी
11- " राजमलजी गांधी -सिरोही, कल्याणजी
परमानन्दजी 12- " मोहनरावजी, एडवोकेट -बाली 13- " मांगीलालजी धोका -पाली, उदयपुरिया बाजार
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________________ 14-श्रीमान् गणेशलालजी पुजावत -उदयपुर, अध्यक्ष, पद्म नाथ स्वामी तीर्थ, कमेटी 149, बड़ा बाजार उदयपुर 15- " उगमसीजी जैन -जालोर 16- " कपूरचंदजी जैन -हिण्डोन सिटी 17- " भगवानदासजीपल्लीवाल -जयपुर-महावीर तीर्थ रक्षा कमेटी " नथमलजी सालगोया -भीलवाड़ा ..........-बीकानेर 20- " .................-मेड़ता 21- " मांगीलालजी सुराणा -देलवाड़ा 19- " स्थायी विशेष प्रामंत्रित 1-श्रीमान लेखराजजी मेहता -जोधपुर 2- " भूरमलजी जैन -बाड़मेर " वल्लभराजजी कुम्भट -जोधपुर महावीरप्रसाद जैन -भरतपुर 5- " मूलचन्दजी -लुणावा ___ मोतीलालजी शाह -जिरावला तीर्थ कालुलालजी जैन -उदयपुर, मेवाड़ मंदिर जिर्णो० कमेटी ( 44 ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com