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सेवा निरन्तर करता रहता है। यह सब जैन धर्म के ठोस सिद्धान्तों-अहिंसा, त्याग और अपरिग्रह आदि के व्यक्तिगत जीवन में सरल और सहज अभ्यास से सम्भव प्रतीत होता है। मैं सम्मेलन की सफलता के लिये मंगल कामना करता हूं।
वसन्तराव पाटिल
उक्त सन्देश श्री लेखराज जी मेहता ने सदन को पढ़कर सुनाया और तत्पश्चात् श्री सुल्तानमल जी जैन, अध्यक्ष नाकोड़ा तीर्थ द्वारा सम्मेलन का उद्घाटन किया गया। उद्घाटन के उद्बोधन में श्री सुल्तानमल जी जैन ने जैन संघों, संस्थाओं एवं विभिन्न संस्थाओं को संगठित होने के लिए आग्रह किया और उन पर आने वाले संकटों का निवारण करने हेतु संगठन की आवश्यकता पर बल दिया। उद्घाटन भाषण के पश्चात् श्री लालचंदजी छगनलाल जी शाह, पिंडवाड़ा वालों ने परम पूज्य आचाय भगवन्त श्री 1008 श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज साहब का सन्देश पढ़कर सुनाया। संदेश में प्राचार्य श्री ने सम्मेलन की सफलता हेतु आशीर्वाद दिया और जैन संस्कृति की रक्षार्थ बाल दीक्षा के सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत की गई रीट याचिका का विरोध करने के लिए सम्मेलन से अपेक्षा की।
__ इसके उपरांत अध्यक्ष महोदय ने अपने अध्यक्षीय भाषण के अतिरिक्त पूज्य उपाध्याय श्री धर्मसागरजी महाराज साहब के
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