Book Title: Rajasthan Jain Sangh Sirohi Sankshipta Report
Author(s): Pukhraj Singhi
Publisher: Pukhraj Singhi

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Page 6
________________ माननीय श्री संघ के प्रतिनिधिगण, मान्यवर, राजस्थान प्रदेश में जैन धर्मावलम्बी काफी संख्या में निवास करते हैं और उनके कई ऐतिहासिक तोर्थ, मन्दिर, उपाश्रय, स्थानक, धर्मशाला, पुस्तकालय, विद्यालय एवं कई धार्मिक व धर्मादा प्रन्यास एवं संस्थायें जनसेवा के कार्यों में रत हैं। इन संस्थाओं, प्रन्यासों द्वारा जब कभी प्राकृतिक विपदायें-बाढ़, अकाल एवं महामारी आदि आती है तो मानव समाज की सेवा करने में भारी योगदान दिया जाता है । मानव सेवा ही नहीं वरन् प्रत्येक जीव मात्र की सेवा ही हमारे धर्म व समाज का मुख्य उद्देश्य रहा है। इतना ही नहीं जैसा पूज्य आचार्य भगवन्त श्री1008 श्रीमद्विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी महाराज साहब ने अपने सच्चाई शीर्षकान्तर्गत कहा है-"सवि जीव करु शासन रसि" इसी भावना से हमारा समाज, धर्मोपदेश एवं श्री संघ अोतप्रोत है । फिर भी आज कुछ हमारी ऐसी समस्यायें है जिनका निराकरण संगठित रूप से करना है जिससे हमारी उक्त भावना को सम्बल मिले तथा हमारा समाज व श्री संघ शान्तिपूर्वक अपने तीर्थ, मंदिर, उपाश्रय, प्रन्यासों एवं संस्थाओं की व्यवस्या एवं सुरक्षा कर सके और जो कार्य संस्कृति (जैन संस्कृति) हमें उत्साहित करती है उसका संवर्धन हो सके । भारतीय संविधान में धारा 25-26 एवं 30 में निम्न प्रावधान है : Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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