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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 19 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
रहे थे जिस जन्मांध ने जो अंग छुआ उसे ही वह हाथी मान रहा थां जितने अंगों का स्पर्श किया, उतने प्रकार से उन्होंने हाथी की कल्पना की तथा एक दूसरे के प्रति द्वेष-भाव भी प्रकट करने लगे, क्योंकि प्रत्येक अंधा अपने द्वारा स्पर्शित अंग को हाथी बोल रहा थां देखना अज्ञानता का परिणाम, एकांगी-ज्ञान की विषमतां अहो! अधूरा ज्ञान अज्ञानता से ज्यादा घातक होता है और विपरीत-ज्ञान तो अधूरे से अधिक घातक हो जाता
अहो ज्ञानियो! लिखने-बोलने के पूर्व आगम-सिद्धांत को लख लेना चाहिएं जब तक जिनागम अर्थात् न्याय, नय, निक्षेप, अध्यात्म, सिद्धांत का विशद् ज्ञान न हो, तब तक लेखनी चलाने तथा प्रवचन करने की भावना ही नहीं लानां आज तक जो भी नवीन पंथों की स्थापना के हेतु देखे गये हैं, उन स्थापकों के साहित्य के आडोलन से यही ध्वनित हुआ है कि वह एक नय व निजी चिंतवन के ऊपर खड़ा किया गया मिथ्यामत हैं आगम एकांत-नय को मिथ्या ही कहता है, क्योंकि अपेक्षाशून्य नय कभी भी सम्यकपने को प्राप्त नहीं होतें जैसा कि कहा है :
निरपेक्ष नया मिथ्यां 108- आ.मी. कोई निश्चय को मुख्य मानता है, कोई व्यवहार को; पर सत्यता तो यह है कि एक-एक को माननेवाले दोनों स्वसमय से च्युत हैं सम्यग्दृष्टि उभय नय को स्वीकारता है तथा मध्यस्थ रहता हैं नय तो वस्तु -व्यवस्था को समझने की शैली है, वस्तु-स्वभाव नहीं हैं वस्तु का स्वभाव तद्-तद् वस्तु का भाव है, जैसा कि आचार्य पूज्यपाद स्वामी ने लिखा है:
तस्य भावस्तत्त्वम् तस्य कस्य? योऽर्थो यथावस्थितस्तथा तस्य भवनमित्यर्थः स.सि.टटीका 6
अर्थात् उसका भाव 'तत्त्व' कहलाता हैं यहाँ 'तत्' पद से कोई भी पदार्थ लिया गया हैं आशय यह है कि जो पदार्थ जिस रूप में अवस्थित है, उसका उसरूप में होना, यही 'तत्त्व' शब्द का अर्थ हैं इस प्रकार यहाँ इस बात का ध्यान रखना कि वस्तु का स्वभाव ही तत्त्व हैं उस वस्तु-स्वभाव को समझने के लिए नयों का कथन किया जाता हैं 'स्याद्वाद' कथनशैली है, अनेकान्त बहु-धर्मात्मक वस्तु हैं अनेक धर्मों को एकसाथ कहा नहीं जा सकता, इसलिए सप्तभंगी- न्याय का उपयोग जैन दर्शन में किया गया हैं सात नय को सात जन्मान्धों के दृष्टांत से ही आचार्यश्री समझा रहे हैं एक व्यक्ति ने हाथी के कान पकड़े, दूसरे ने आँख का स्पर्श किया, तीसरे ने सूंड पकड़ी, चौथे ने पीठ, पाँचवे ने पेट, छठवें ने पूँछ तथा सातवें ने पैर पकड़ा सातों ही विसंवाद करने लगे कि हाथी तो हमने देखा हैं जिसने कान पकड़े थे, वह कहता है हाथी तो सूपे-जैसा था जिसने आँखें स्पर्शित की थी, उसे हाथी चने-जैसा लगां जिसने पेट पकड़ा था,वह दीवार-जैसा हाथी को मानता हैं
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