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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 17 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
"स्याद्वाद को नमस्कार" परमागमस्य जीवं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् 2
अन्वयार्थः निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् = जन्मान्ध पुरुषों के हस्ति-विधान का निषेध करने वाले सकलनयविलसितानां = समस्त नयों से प्रकाशित वस्तुस्वभावों के विरोधमथनं विरोधों को दूर करने वाले परमागमस्य-उत्कृष्ट जैन सिद्धांत के जीवं = जीवं भूत, अनेकान्तम् = एकपक्ष-रहित स्याद्वाद को अहम् नमामि = मैं (अमृतचन्द्र सूरि) नमस्कार करता हूँ
भव्य बंधुओ अंतिम तीर्थेश वर्धमान स्वामी के शासन में हम सभी विराजते हैं आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी के माध्यम से जिनदेव की परम- समरसी भावयुक्त पीयूषवाणी का पान कर रहे हैं अहो ! कैसा मधुर अमृत है, जिसे महिनों से कर्णाजुलि से पी रहे हैं, फिर भी तृप्ति नहीं हुईं प्रतिदिन-प्रतिक्षण,नवीन-नवीन अवेदन हो रहा है, अनंत संसार की वेदना शांत हो रही हैं यही तो जिनदेव की वाणी का प्रभाव हैं प्रथम श्लोक में मंगलाचरण करते हुए परमज्योति की वंदना की है, जिसमें लोकालोक के चराचर पदार्थ प्रतिबिम्बित हो रहे हैं, दर्पण के सदृश सम्पूर्ण ज्ञेयों का बिम्ब झलक रहा है, फिर भी प्रभु निश्चयनय से 'पर' के ज्ञाता नहीं, स्वज्ञातत्व भाव से युक्त हैं अतः निश्चयनय से अरहंतदेव आत्मज्ञ हैं, व्यवहारनय से सर्वज्ञ हैं पर ध्यान रखना,यह नय-विवक्षा समझना, परंतु सर्वज्ञता पर कोई प्रश्नचिन्ह खड़ा नहीं कर देनां नियमसार जी में आचार्य कुंदकुंद स्वामी ने भी शुद्धोपयोग अधिकार में कहा है :
जाणदि पस्सदि सव्वं ववहारणएण केवली भगवं
केवलणाणी जाणदि पस्सदि णियमेण अप्पाणं 15g अर्थात् व्यवहारनय से केवलीभगवान सबकुछ जानते और देखते हैं निश्चयनय से केवलज्ञानी आत्मा को जानते और देखते हैं यह चेतन की परमशक्ति है जो कि विश्व के समस्त ज्ञेयों/प्रमेयों को निज का विषय किये हैं यह परमज्योति अरहंत-सिद्ध परमात्मा में हुआ करती हैं जहाँ गुण का कथन होता है, वहाँ गुणी का कथन स्वमेव हो जाता हैं इस कारण से समझना कि जहाँ पर परम-ज्योति यानि कि केवलज्ञान की वंदना की गई है, वहाँ पर गुणी अरहंत-सिद्ध परमेश्वर की वंदना स्वतः हो जाती हैं
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