Book Title: Puran aur Jain Dharm Author(s): Hansraj Sharma Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 7
________________ वक्तव्य। प्रिय पाठको! इस पुस्तक के अवलोकन से आपको स्वयं ही ज्ञात हो जावेगा कि यह अपने विपय और ढङ्ग की एक अनोखी पुस्तक है । देश, काल और समय को देख कर ऐसी पुस्तको की अत्यन्त आवश्यकता थी, जिनसे सत्य वातों का विकाश हो कर भ्रम-जनक वातों का नाश होता रहे । इसी कारण से यह पुस्तक अथवा अन्य ऐसी ही सम्बन्ध रखने वाली पुस्तकें तय्यार करा के इस मण्डल ने भविष्य में प्रकाशित करने का निश्चय किया है। जिससे जैन और जनेतर सव ही लाभ उठा सकें। विशेष कर इस विषय मे बहुत से जैनेतर भाइयों का आग्रह था कि ऐसी पुस्तकें अवश्य निकलनी चाहिये। प्रकाशित होने से पहिले यह पुस्तक अवलोकनार्थ श्री १००८ श्री विजयवल्लभ-सूरि जी महाराज, लाला कन्नोमल जी जज व पं० सुखलाल जी के पास भेज दी गई थी और उनकी सम्मति मिलने पर ही हमने इसको छापने का साहस किया है। आशा है कि पाठकगण इसे अपना कर लेखक महाशय के परिश्रम को कृतार्थ करेगे और मण्डल के कार्य को उत्तेजना देगे। परिश्रम और खर्च को देखते हुये इस पुस्तक का मूल्य अल्प ही रक्खा गया है। कारण कि ऐसी पुस्तकों के प्रकाशन में खर्च बहुत करना पड़ता है। फिर भी यदि हमारे पाठकों ने इसका सदुपयोग किया तो हम अपने कार्य को सफल समझेंगे। रोशनमुहल्ला आगरा। । दयालचन्द जौहरी १ सितम्बर १९२७ मंत्री-श्रीआत्मानन्द जैन पुस्तक-प्रचारक मण्डलPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 117