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नवकार अर्थसहित. अने जो तमें कहेशो के विस्तारें नमस्कार कराय ने ? तो त्यारें झपनादिक चोवीशे तीर्थंकरोने व्यक्तिसमुच्चारण थकी एटले जू जूउं नाम लेश्ने नमस्कार करवो जोश्य.
समाधानः-अरिहंतने नमस्कार करवाथकी जे फल पामीयें, ते साधुने नमस्कार करवाथकी फल न पामीयें, जेम मनुष्यमात्रने नमस्कार करवा थकी राजादिकना नमस्कार- फल न पामीयें, ते माटे विशेषथकी प्रथम श्रीअरिहंतनेज नमस्कार करवो युक्त जे. __आशंकाः-जे सर्वश्री मुख्य होय, तेनुं प्रथम ग्रहण करवू ए योग्य , तो तमें अहीयां पंच परमेष्टीने नमस्कार करतां प्रथम श्रीअरिहंतने नम स्कार कीधो, परंतु जो प्रधान न्याय अंगीकार करीयें, तो अहीयां पंच पर मेष्ठीमां सर्वथा कृतकृत्य पणे करी सिझने प्रधान पणुं २ माटे सिझ मुख्य बे, तेथी प्रथम सिझने नमस्कार करीने पठी अरिहंतादिकने अनुपूर्वीयें नमस्कार करवो युक्त जे.
समाधानः-सिझने पण श्रीअरिहंतना उपदेशथकी जाणीयें बैये. वली अरिहंत, तीर्थ प्रवर्तन करे, उपदेश आपीने घणा जीवोने उपकार करे अने सिक पण श्रीअरिहंतना उपदेशथकीज चारित्र आदरी कर्मरहित थर सिद्धपणुं पामे, माटे श्रीअरिहंतनेज प्रथम नमस्कार करवो योग्य .
आशंकाः-जो एम उपकारीपणुं चिंतवी नमस्कार करीयें, तो आचा र्यादिकने पण प्रथम नमस्कार करवो युक्त था? केम के को एक समयें एनाथी पण अर्हदा दिकनुं जाणपणुं थाय बे, माटें आचार्यादिक पण म. होटा उपकारी बे, तेथी तेमने प्रथम नमस्कार करवो युक्त जे.
समाधानः-आचार्यने उपदेश देवानुं सामर्थ्य, श्रीअरिहंतना उपदेश्या थकीज होय , परंतु आचार्या दिक स्वतंत्रथका उपदेश थकी अर्थज्ञापकपणुं पमिवजता नथी, एटला माटे अरिहंतज परमार्थे करी सर्व अर्थ ज्ञापक ने तेथी, प्रथम नमस्कार करवा योग्य जे. वली आचार्यादिक तो अरिहंतनी पर्षदारूप जे. माटे आचार्यादिकोने प्रथम नमस्कार करी पड़ी श्रीअरिहंतने नमस्का करवो, ए योग्य न कहेवाय, ए विषे आम कह्यु बेः-"पुवाणुपुवि न कमो नेवय पछाणुपुबि एस नवे ॥ सिझाश्या पढमा, वीश्रा ए साहुणो श्राइं॥॥” अरहंता उवएसेणं, सिद्धाणं जंति तेण श्ररि
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