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और सर्व कार्यों का चलान कर सके जैसा निपुण, स्थपतिका आझापालक । सुत्रमाही आर्किटेक्ट अॅजिनीयर ।
३ तक्षक-सूत्रमान प्रमाणको जाननेवाला छोटेबडे पत्थरोंका काम करनेवाला या करानेवाला । सरल या नक्काशी या रूप काम करनेवाला, सदा प्रसन्न चित्त, स्थपति प्रति सद्भाव धरानेवाला तक्षक (ओवरसीयर) है।
___४ वर्धकी-शास्त्रमें अिसके दो प्रकार कहे है। अक तो काष्ठ कार्य करनेवाला (सूत्रधार) और दूसरा मिट्टी कार्यमें निपुण (मोडलिस्ट) गुरुभक्त वर्षकी जानना ।
आधुनिक कालमें सोमपुरा शिल्पिओं को कच्छ देशमें “ गीधर” कहते हैं। वह शब्द गजधर (गज को धारण करनेवाला) का अपभ्रंश है । सौराष्ट्र गुजरात आदि पश्चिम भारतके पुराने शिलालेखांमें शिल्प शास्त्रीको “सूत्रधार" कहा है। उसका अपभ्रंश "ठार" हुआ और सौराष्ट्रके शिल्पी परस्पर अिस शब्दका प्रयोग करते है । अंग्रेजी राज्य शासन कालमें कारीगरेके समूहके अधिकारी को “ मिस्त्री " कहते हैं परंतु यह शब्द शिल्पियोंके लिये ठीक नहीं । शिला को घडने वाला शिलावट, जिसका अपभ्रंश सलाट हो गया। उत्तर भारतमें “शिलावट" शब्द विद्यमान है ।
भारतका शिल्पि वर्ग-भारतके प्रत्येक प्रांतमे' प्राचीन शिल्पका अभ्यासी वर्ग बसा हुआ था । अपने अपने प्रांतोंमें वे प्रचलित जाति (नागरादि, द्राविडादि, भूमिजा, इत्यादि) के प्रासादांकी रचना करते । परंतु कालधर्म और विधर्मीयांकी धर्माधतासे अमुक प्रांतोंमें अिस वर्गका नाश हो गया और उसके स्थापत्य भी (नष्ट) मलियामेह हो गया । प्राचीन शैलीके शास्त्रोक्त नियमानुसार जैसे स्थापत्य होते जिससे उन प्रांतोकी शिल्पशैली (पद्धति) मूलमें किस प्रकारकी और किस कालकी थी यह जानने के साधन अल्प है। बंगाल, बिहार, सरहद प्रांत, पंजाब, उत्तर प्रदेश, कश्मिर या आंध्र प्रदेशमें प्राचीन शिल्प स्थापत्य अभ्यासके लिये तुलनात्मक दृष्टिसे अल्प हैं। यद्यपि खुदाी में ये अवशेषरूपमें पाये जाते हैं। उपर कहा हुवा शिल्पका अभ्यासी वर्ग तेरहवीं चौदहवीं शताब्दि तक अस्तित्वमे था । उन्होंने शिल्पग्रंथों की अच्छी हिफाजत की थी । ग्रंथोके अनुसार उन्होंने कार्य करवाये थे । जैसा शिल्पिवर्ग आज भी सोमपुरा शिल्पिवर्ग पश्चिम भारत गुजरात राजस्थान और मेवाड़में भी है। उनकी उत्पत्ति का अितिहास सोमनाथ महादेव की स्थापना के साथ जुडा हुआ है । स्कंदपुराणके प्रभासखंडमें सर्वश्रेष्ठ शिल्पि सोमपुराको विश्वकर्मा रूप मानकर देवोंने शिल्प स्थापत्यका व्यवसाय उनको सुपूर्द किया था । उन के पास प्राचीन शिल्पग्रंथोका संग्रह है। पूर्व