Book Title: Prasad Manjari
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Balwantrai Sompura

View full book text
Previous | Next

Page 115
________________ 61 * Prasad Manjari * मूलरेखा अर्थात् पायचा गर्भगृहसे थोडा विस्तार चौडा रखना। गर्भगृहसे पायचा संकुचित नहीं करना चाहिये. (क्योंकि संकोचनमें दोष कहा गया है) ८२, ८३, शिखर के भद्र पर उरुशृंग एक से नौ तक चढानेको कहा गया है। शिखरमें उपरापर ऊरशृंग चढानेमें ऊपरके पहले ऊरु,गके पायचा से उसके बांधणे स्कंध तककी ऊंचाईके तेरह (१३) भाग करके नीचेका ऊरुशृंग स्कंध तक ७ सात भाग और ऊपरके छ भाग रखने ।१७ ८४ १८शिखरकी मूलरेखा-पायचे के विस्तारके दश भाग करके उपर स्कंध MEN नम्बर भाग उदय- . - ... -- उदय १०मामा --- AAT) --- (१०भाग-1 ----- भाग---- -- भाग-.--: ९भाग:- - - - - चार गुणारे. भाचार गुणाभूत सेवा. in भूस्कृत श्या. 20.5. ___ १६ शिखरका पायचा गर्भगृहकी भीतरी दीवालके बराबर मिलाना । कितनेही शिल्पी. जहाँपर छोटे मंदिरोंका निर्माण होता है वहाँ पर, जहाँ ओसार अल्प हो, वहां गर्भगृहके पाटके फर्क से पायचा-मूलरेखा मिलान करते हैं। अपितु जिनालय सहस्रलिंङ्ग देवकुलीका एवं चोसठ योगिनी जैसी सीधी शिखरिणियोकी । पंक्तिमें जहां छोटे बडे पदकी देवकुलीकाले हों, उसके पीछे मंडोवर एवं उपरसे शिस्त्ररके लिये एकरुप प्रदशिनि करने के लिये आडा गर्भचलित करने के विषयमें वृक्षार्णव जैसे महाग्रंथ में भी कुशल शिल्पीने छुट की आज्ञा दी गई है जिसका कुरूप योग न हो एसी चेतावनी भी दी है। १७ उपरे पर उरुश्रंग चढाने के विभाग हेतु सामान्य नियम कहा है । किंतु नीचे के उपाङ्गो के विस्तार पर उसका विशेष आधार शिखर के सूत्र छोडते समय होता हैं, उस समय ग्रह नियम संभालने के लिये बहुत बिचारनीय प्रश्न बन जाता है। यहां बुद्धिमान शिल्पिको विवेकसे काम लेना पडता है। १८ शिखरकी मूल रेखाके पायचेका विस्तारका दश भाग करके ऊपर स्कंध

Loading...

Page Navigation
1 ... 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158