Book Title: Prasad Manjari
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Balwantrai Sompura

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Page 120
________________ * प्रासादमञ्जरी * 66 - अथ कलशमान विभाग-प्रासाद कर्णे रेखाये विस्तारमें हों उनके आठवें भागका कलश (इंडक) का विस्तार जानना । कहे गये मान में से १६ सोलहवां भाग बढाने से ज्येष्ठमान और १६ सोलहवा भाग घटाने से कनीष्ठमान जानना । कलशका विस्तार से डयोढी ऊचाई करनी | ऊंचाई के नौ भाग करना जिनमें गला एक भाग, अंडक-पडधा तीन भाग, छ जी एक भाग, कणी एक भाग, और 11 - - - स 1 कालकरा - 1 CEOयमा IN STARD S - -Tamire 1 पवणा 1 - - मला मान । 13 114 । STT . प्रभाकर.ओ.यानि डोडला बीजोह तीन भाग इस प्रकार नौ मोग उदयका जानना । अब कलशकी चोडाई के भाग कहते हैं। डोडला-बीजोरका अग्र भाग एक, उसके नीचे मूलमें दो भाग, कणी विस्तार तीन भाग, छज्जी विस्तार चार भाग, अंडक पडधा छ भाग विस्तारमें; नीचे गला दो भाग: नीचे पीठ गर्भसे दो (कुल चार) भाग जानने । इस प्रकार कलशके विस्तार के छ भाग जानना । ९६ से ९८ __ अथ ध्वजदंडमान-प्रासाद जितने कम-रेखाओंसे विस्तार हो इतना ध्वज दंड तांबेके पट्टासे मजबुत बाँधना । स्तंभिका के उपर कलश बनाना। कितने ही प्राचीन मंदिरेमें यह स्तंभिका देखने में आइ नहीं है । परंतु शास्त्रोंका पाठ यही है । लगभग २०० दो सो वर्षो से आमलसारे में ध्वजादंड स्थापन करते हैं। यह दंड बहुत ऊंचा लगता है। ध्वजादंडका साल (नीचला भाग आमलसारे में प्रविष्ट होता हे वे) प्रमाणसे अधिक रखनेकी प्रथा है। वो उचित नहीं है।

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