Book Title: Prasad Manjari
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Balwantrai Sompura

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Page 130
________________ ७४ * प्रासादमञ्जरी * 74 विभक्ति |७|| प्रासादके क्षेत्रके बीश भाग करके दो भाग कर्ण-रेखा कोणी डेढ भाग, रथ दो भाग, नंदी डेढ भाग, भद्र नंदी एक भाग एवं सारा भद्र चार भागका बनाना । इस प्रकार कुल बीसाइ तल भाग हुआ । रेखा पर दो शङ्ग और एक तिलक चढाना । तब शिखरका पायचा चौदह भागके विस्तारका होगा । नंदी पर एक एक शृङ्ग और तिलक चढाके उस पर प्रत्यङ्ग चढाना । प्रतिरथ पर तीन तीन शृङ्ग और भद्र पर चार चार उरुशल चढाना | नंदी पर एक एक शङ्ग और तिलक । उसी प्रकार भद्र नंदी पर एक शङ्ग चढाने से बीसवां “ मुकुटोज्ज्वल प्रा० इक्याशी अंडकका प्रासाद जानना १२४-२५-२६ इति मुकुटोज्वल ।। इक्कीसवाँ प्रासाद- मुकुटोज्ज्वल प्रासादके स्थान पर रेखा पर तीन शृङ्ग चढाने से इक्कीसवां "गजराज" प्रा० तल भाग २० अंडक शृङ्ग पिच्याशी १२७ इति गजराज । बाइसवाँ प्रासाद--गजराजके स्थान पर रेखा पर जहां तीन शङ्ग हैं उनमें से एक शृङ्ग छोडकर वहाँ तिलक रखना । और भद्र कर्ण पर एक शङ्ग चढाने से ब्रह्माजी को प्रिय ऐसा बाइसवाँ “राजहंस” प्रा० तल भाग २० निव्वाशी शृङ्गका जानना । १२८ इति राजहंस । तेइसवां प्रासाद-राजहंसके स्थान पर रेखा पर जैसे कि पूर्व थे, वैसे ही तीन शङ्ग चढाने से और भद्र नंदी पर तिलक चढाने से लक्ष्मीपति विष्णुको प्रिय ऐसा तेइसवां गरुड प्रा० तल भाग २० शङ्ग तिरानवेका जानना । १२९ इति गरुड । विभक्ति ॥८॥ प्रासादके क्षेत्रके बाईस भाग करके भद्रकी पक्ष-पडखो पर एक एक भागकी नंदी तीन प्रतिरथ और रेखा तथा आधा भद्र-ये सब दो दो भागके बनाने से कुल बाईस भागका तल हुआ; कर्ण रेखा पर दो शृङ्ग और एक सिलका भद्र पर चार चार ऊरुशृङ्ग; कर्णकी बाजूवाले प्रतिरथ घर दो दो शृङ्ग ओर उन पर तीन भागके विस्तारका प्रत्यक्ष (चोथगराशिया) चढाना; रथ पर तीन तीन शृङ्ग उपरथ पर दो दो शृङ्ग और भद्र नंदी पर एक एक शृङ्ग चढाने से हर-शिवको प्रिय ऐसा चोबीसवां "वृषभ" प्रा० तलभाग बाइस शृङ्ग सतानवेका जानना इति घृषभ. १३०-१३१ पच्चीशवा प्रासाद-वृषभके स्थान पर रेखा पर जो तृतीय शृङ्ग चढाया जावे तो सिद्धिको देने वाला ऐसा पच्चीसवा “मेरु" प्रासाद तल भाग २२ शृङ्ग एकसो एक का जानना. १३२ २७ इसी प्रकार केशरादि सांधार अथवा निरंधार प्रासादका पचीश शिखर बनाये जो सकते है इति मेरु प्रासाद. २७ सांधार केशरादि प्रासादकी आठ विभक्तियो पर पच्चीश भेद कहें यथा

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