Book Title: Prasad Manjari
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Balwantrai Sompura

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Page 147
________________ 87 * Prasad Manjari * ८७ - कसासम ROS. नाना ५ जलाशयके बीच या आगे सीढियांके पहले बनाये हुए बलाणकका नाम पुष्कर जानना । इसी रीतसे बलाणकका लक्षण स्थान मान देखके भूमि मंजिल करना । १५४, ५५ ___अथ संवरणा-३२प्रासादके मंडप पर विशेष करके संवरणा (शामरण) हो । उसके पचीश प्रकार कहे हैं । इनके नाम घंटा कूट आदिकी संख्याके साथ शिल्प ग्रंथोमें अलग दिये हुए हैं। वे पांच घंटा से लेकर चार चार घंटाको वृद्धि करते हुए १०१ घंटे तक पञ्चीश नाम 'संवरणा'का कहा है। प्रथम आठ भाग तलसे शुरु होती है । १५६,५७. शिवलिङ्ग-प्रासादके मानके अनुसार पाषाणका घटित लिङ्ग-राजलिङ्ग शास्त्र में कथित विधिसे बनाना । परंतु स्वयंभूलिङ्ग बाणलिङ्ग, अथवा रत्नके लिङ्ग प्रासाद प्रमाणसे न्युनाघिक छोटा था बडा हो तो उसका दोष कहा नहीं है । प्रासादकी जगती से तीन चार एवं पंचगुणा ऐसे तीन विधिसे देवपुर प्रासाद बनाना । १५७,५८ ____ अथ भिन्नादिदोष-ब्रह्मा विष्णु शिव एवं सूर्यके प्रासादमें यदि मकडी आदिके जाले हो तो उसका भिन्नदोष लगता नहीं है। परंतु दूसरे देवो यथा गणेश, गौरी और जिनके प्रासादमें जो ऐसा हुआ तो वहां भिन्नदोष लगता है। लिङ्ग या ३२ संवरणाकी शास्त्रोक्त प्रथा लगभग दो सोक वर्षसे विस्मृत हुई हो ऐसा लगता है। संवरणा के मुख्य अङ्गो के थरो में घंटा, कूट, छायको उद्गम, उरुघंटा, मूलघंटा और सिंह उरुघंटा शिखरके ऊरुशृङ्ग रुप है। अपराजित दीपाव ज्ञानरत्नकोशमें संवरणा विषय दिये गये हैं । संवरणा के अपभ्रंश शामरण हुआ। वर्तमान में बनती संवरणा अकीला घंटाका थरोकी होती है कूट छाद्यकी या उद्गम नहीं होती। DAMKCI TEDIN राजसंनका

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