Book Title: Prasad Manjari
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Balwantrai Sompura

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Page 135
________________ 7 * Prasad Manjari * पारावासिं ---9775.. सुदर्शन ----- - ----- - - २ - ---- 13पद द O----0 +10------------02 मंगऽय 73 बदमा G :--- ... ६यम ------ --- ---- प्र म - ---- ----- बराबर मिलाना । मंडपकी घंटाका आमलसारा नीचे हो यह श्रेष्ठ है परंतु ऊंचा नहीं होना चाहिये । १४२ निरंधार प्रासादके मंडपका उदय प्रासादके बराबर रखकर उसके उदय के १३ भाग करने। पीठ पर सवा भागका राजसेनक, सवा तीन भाग वेदिका एक भाग आसन पट्ट (ओसरोट); साढे पांच भागका स्तम्भ; पोने भागका भरण, सवा भागका शराः इस प्रकार तेरह भाग और उस पर दो भागके पाटः भारोट; पाट भारवट ये सब मिलकर उदयके पन्द्रह भाग हुए। पादमें एक भागका मोटा छज्जा बनाना। जो पाटके पेटमें ढालू समाविष्ट करनाः ------ ----------- घपदमा ------ -- ----- m --- ... - - ।११ । O Rोमा आसन पट्टके उपर एक हाथ ऊंचा ढलता हुआ कक्षासन करना । १४३, Haland ___ अथ गूढमंडप---प्रासादोंको जोडने वाले भित्ति दिवार वाले गूढ मंडपके आठ प्रकारके स्वरुप कहे है । १ चोरस, वर्धमान, २ भद्रयुक्तः स्वस्तिक, ३ प्रतिरथ युक्त गरुड नामकः ४ भद्र और उसके साथ प्रभद्र युक्तः सुरानंद नामक; ५ कोणी युक्त सर्वतो भद्र नामक; ६ अधिक भद्र युक्त मुखभद्र युक्त कैलास नामका दो प्रतिरथ युक्त इंद्रनील नामक, तीन प्रतिरथ युक्त रत्नसंभव' नामक; इस

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