Book Title: Prasad Manjari
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Balwantrai Sompura
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* Prasad Manjari *
" मा काम हम से भाग १२०
नंद्या द्वे द्वे तिलक भद्रे युग्म रथे त्रयम् ॥१२१॥
रत्नकटस्तदा नाम शिवलिङ्गेषु कामदः । रेखायां वतीय शृङ्ग सति वैडूर्य उच्यते ॥१२२॥ रेखोर्षे तिलक रथ नये शृो द्वे पद्मरागः । रेखोर्ध्वस्तात् पुनः शृङ्ग कारयेद्वजकस्तदा ॥१२३।। नख भक्ते द्वयकणे साढे कोणोद्वय रथः । सार्द्ध नंदी भद्र नंदी भागोभद्र युगांशकः ॥१२४६
कर्णे द्वि शङ्ख तिलक रेखामन्वंश विस्तरा । नद्या शृङ्गं च तिलक प्रत्यङ्म च तदूर्ध्वतः ॥१२५।। वयं भद्रं चतुः शृग नद्या शृङ्गां च तिलक । भद्र ना तथा शृङ्ग प्रासादो मकुटोज्ज्वलः ॥१२६।।
तत्र रेखो, च शङ्गे प्रासादो गजराजकः । तथैव तिलकं कुर्यात् भद्र कर्णेतु शुङ्गकम् ॥१२७॥ राजहंसः समाख्यातः कर्तव्यो ब्रह्मम दिरे । तथैव शुग कूर्मात् भने कर्णे तु तिलकम् ॥१२८! गरुडः स समाख्यातः कर्तव्यच श्रियः पते । द्वाविंशत्यं शके नंदी भागेन भद्र पार्श्व यो ॥१२९५ जयपतिरथः कर्णो भद्रा च द्वि भागिकम् ।
कर्णे द्वि शृङ्ग तिलक भद्रे शृङ्ग चतुष्टयम् ॥१३०॥ 3. Vss. 124'--133' absent in B. 24, प्रत्यङ्गस्या धोरथे in A. 25. Vss. 127 and 128 missing in A but known in mss. fronm
Rajasthau.

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