Book Title: Prasad Manjari
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Balwantrai Sompura

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Page 60
________________ 16 * प्रासादमञ्जरी * भद्रपार्श्व द्वये कूर्याद् भाग भागेन नंदिके । कर्णे शृङ्गाद्वयं शृङ्गो परिष्टात् तिलक रथे ॥११३॥ नद्यामेकैक तिलक भद्रे शृङ्ग त्रयं न्यसेत् । श्री वृक्षस्तत्र कर्णे त्रिशङ्गैः स्यादमृतोद्भवः ॥११४।। द्वे द्वे प्रतिरथे द्वे द्वे भद्रे च हिमवान् मतः । भद्रे तृती। नंयांस्तु तिलकं हेमकूटकः ॥११५|| रेखोर्ध्वस्तिलकं नंद्या शुग कैलास संज्ञकः । रेखायास्तिलकं स्थाने शङ्ग पृथ्वीजयस्तदा ॥११६॥ षोडशांशे भागमाना कोणी कर्ण रथान्तरे । शेष मन्वंशवद्भद्रे निर्गमोऽशः परे समा ॥११७।। कर्णशङ्गद्वयं नंद्या तिलक' च प्रत्याङ्गाकम् । द्वय रथे त्रयं भद्रे नंदी केन्द्र तोलकः ॥११८॥ नंधा शङ्गे महानिलो रेखोवें तिलके सति ।। रेखास्तिलकै स्थाने शृङ्गा यदि सभूधरः ॥११९॥ अष्टादशांशे भदस्य पार्श्वयो नंदिका द्वयम् । शेष कलांशंवत्कणे द्वे शृङ्गे तिलकस्तथा ॥१२०॥ कर्णे नंद्या शृङ्ग तिलक प्रत्याङ्गा युग्म भागिकम्"" Vss. 121 to 123 are variously given in B. as: नंद्या उद्वेतु तिलके प्रत्याङ्गे युग्म भागिकम् । शगं त्रयस्थेभद्रे युग्मनंद्यातु तैनके ॥ भद्र नंद्यान्यसेशन तिलकं रत्नकूटकः । रेखा तृतीय शृङ्गतु सतिवैडूर्य उच्यते ॥ अयं नंद्यातु तिलके द्वे शृङ्गे पद्मरागकः । रेखाधः स्तान पुनः शृङ्ग कारयेद्वनकस्तदा ।। 22.

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