________________
* प्रासादमञ्जरी *
36
जिसे "मुख मंडप"भी कहते हैं। जगत पर चढनेकी सीढियोंकी पंक्तियाँ बनाना जिसके आगे तोरण सहित स्तम्भ बनाना, जगतीकी चारों ओर पानीकी निकासी के लिये मकरमुख प्ररनाली बनाना। ४०-४१. ____ मंडपके आगे प्रतोल्या और उनके आगे सीढियां रखनी इनके आगे तोरण बनाना, जिसके स्तम्भका अंतर प्रासादकी दीवारके गर्भसे अथवा स्थान के मानसे अथवा गर्भगृहके पद के अनुसार-विस्तारमें रखना। और वे पदके अनुसार उँचाई में पाट अनुसरण करके रखना । ४२-४३
देव वाहन स्थानकी:-चतुष्किका या मंडप प्रासादके आगे एक दो तीन चार पांच छ या सात पद दूर (पदके गुणान्तर) रखना । ४४-४५
जिन प्रासादाय रचना:--जिन प्रासादके आगे समवसरण बनाना उसके आगे (मुख के आगे) गुढ मंडप बनाना । जिन मंदिरके चारों दिशामें चोवीस जिनायतन या बावन जिनायतन अथवा बहुतर जिनायतन मूल जिनमंदिर सहित संख्यामें बनाना | मंडपके गर्भसूत्रके अनुसार दाई व बाई ओरकी दिशामें अष्टापद मंडप त्रिशाला और उसके आगे बलाणक का निर्माण करना चाहिये । ५५-५६-५७
नाभिवेधः-एक ही जो मूल प्रासादके बाई ओर अथवा दाई ओर या आगे पीछे दूसरा प्रासाद बनाना हो तो उसका नाभिवेध नहीं होने देना चाहिये यहाँ नाभिवेधका तात्पर्य आडे खडे प्रासादके गर्भमें दूसरा प्रासाद बनाने में गर्भ समालना । शिवलिङ्ग अथवा शिव प्रतिमा के मंदिरके आगे दूसरे मी देवका मंदिर सामने गर्भमें नहीं बनाना चाहिये । ब्रह्मा विष्णु शिव जिन और सूर्यके मंदिरों के सामने अपनी अपनी मूर्तियोंके प्रासादों की रचना आमने सामने करना। किन्तु शिव के आगे अन्य देवताओंकी स्थापना नहीं करना । क्योंकि इससे द्रष्टि भेद होने से महान भय उत्पन्न होता है। परंतु उन दो के बीच में किल्ला राजमार्ग अथवा दुगुना अन्तर होवे तो कोई दोष नहीं। ५८-५९
५ जगतीके आगे प्रताल्या करनेको कहा है जिसके पांच प्रकार हैं। १ उतना २ मालाधर ३ विचित्र ४ चित्ररुप एवं ५ मकर ध्वजा उसका स्वरुप दो स्तभवाले प्रताल्याको १ उतङ्गः जोडरुप दो स्तंभ वाले प्रताल्या को २ मालाधर; चार स्तमा की चौकी एवं तोरण युक्त को ३ विचित्र विचित्र प्रताल्याके यदि दोनों ओर कक्षासन हेावे तो ४ चित्ररुप; और चोकोके जुरवा स्तंमोहो तो उसे मकरध्वज नामक प्रताल्या कहते हैं। उसका स्पष्ट स्वरुप आकृती दीपार्णव पंथके तीसरे अध्याय में दीया गया है।
६ एक ही प्रासाद के विस्तार में दूसरा प्रासाद बनाते समय जो गर्भ मिलामके लिये स्थलका अभाव हो तो मंडपके गर्भको प्रासादके गर्भ से मिलान करके दूसरे प्रासादका निर्माण करना। परंतु ऐसा करते समय परस्पर मंदिरों