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नागरा द्राविडाश्चैव भूमिजा लतिनास्तथा । सांधाराश्च विमानाश्च मिश्रकाः पुष्पकान्विताः ।। १ ।। एते चाप्टौ शुभा ज्ञेयाः शुद्धच्छंदाः प्रकीर्तिताः ।
दशजाति--कुल--स्थान-वर्णभेदैरुपस्थिताः ॥२॥ १ नागरादि, २ द्राविडादि, ३ भूमिजादि, ४ लतिनादि, ५ सांधारादि. ६ विमानादि. ७ मिश्रकादि, ८ पुष्पकादि अिन आठ जाति के प्रासाद (चौदहमेंसे) शुद्ध छंदकी, देश, जाति, कुल, स्थान अनुसार वर्ण रूप भेदसे उपस्थित हुओं ।
और आगे किस प्रांतमें किस जातिके प्रासादकी रचना होती है यह भी कहा है। शिल्पग्रंथोमें प्रासादोंकी जातियोंके उद्भवके बारे में कथा आती है कि हिमालयकी उत्तरमें दारुकावनमें जिन जिन देव दानवादि गाने जिस जिस प्रकार और आकारमें शिवजी के पूजनकी रचना की उसी के अनुसार प्रासाद के अिस घाटकी आकृति का जन्म हुआ ।
द्रविड शिल्पग्रंथोंमें १ नागर, २ द्राविड ३ वेसर-ये तीन जातियां कही हैं । उत्तर में नागरादि जाति, दक्खनमें द्राविडजाति, और अिन दोनों के मध्यभागमें वेसरजाति के प्रासाद कहे हैं । तब उत्तर भारतके प्रथोमें विस्तार पूर्वक चौदह जातियाँ कही है। ब्रह्मदेश, सियाम, बाली, सुमात्रा आदि अग्नि पूर्वमें प्रवर्तती हुी जातियाँ, भारतकी अिन चौदह जातियों में से हैं असो लगता है।
____ अिन सब जाति के प्रासाद किन किन प्रांतोमें किन किन स्वरूपोंमें बनाये जाते थे, अिसके संशोधन की जरूरत हैं । विद्वान और अनुभवी ज्ञाता स्थपतियोंकी नियुक्ति करके सरकार को यह आवश्यक श्रेष्ठ पुरातत्व कार्य त्वरित करना चाहिये। स्थापत्याधिकारी
_ वास्तुशास्त्रके प्रथमें कहा है कि यजमानको चाहिये कि शिल्पके गुणदोषकी कसौटी के बाद ही श्रेष्ठ शिल्पिको चुनकर कार्यका आरंभ कराना । स्थपति के गुणदोष संबंधमें कहा है-गुणवान्, शास्त्रज्ञ, गणितज्ञ, धार्मिक, सदाचारी, चरित्रवान् , मिष्टभाषी, निष्कपटी, निर्लोभी, बहु बंधुवाला, नीरोगी और शारीरिक दोषहीन, निर्व्यसनी, चित्ररेखा कार्यमें भी प्रवीण, कुशल होना जरूरी है । स्कंदपुराण के प्रभाम खंडमें सोमपुरा शिल्पि श्रेष्ठ माना गया हैं । शास्त्रकारोंने बांधकाम के अधिकारी के वर्ग कहे हैं - १ स्थपति, २ सूत्रग्राही, ३ तक्षक, ४ वर्धकी । अिन चारोंके कर्तव्यकी नाँध है ।
१ स्थपति-स्थापत्यकी स्थापनामे संपूर्ण योग्यतावाला (चीफ अॅजीनीयर) , २ सूत्रग्राही-स्थपति के गुणकर्मको अनुसरनेवाला पुत्र या शिष्य जिसे शिल्पिओंको भाषामें “ सुतर छोडो” कहते हैं । रेखा चित्र बनानेवाला ड्राफ्ट्समेन