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कलाकृति कुंदरत के साथ साम्य धराती होनी चाहिये। जिस दृष्टिसे भारतीय कलाकृतियोंको हम देखें तो भारतीय शिल्पि कुदरतकी बनिस्बत भावनाको प्रबल मानते हैं ।
वास्तु शास्त्र के महान प्रणेता
मत्स्यपुराण और अन्य शिल्पग्रंथो में वास्तुशास्त्र के अठारह आचार्यके नाम दिये हैं । उन्होंने शिल्पग्रंथों की रचना की और अन्य शास्त्रों पर भी उन्होंने लिखा है । वे ऋषिमुनि अरण्य के शांत वातावरणमें रहते थे और विद्याके जिज्ञासुओं को अपने आश्रम में रखकर उन्हें विद्यादान देते थे। जिनके नाम हैं१ भृगु, २ अत्रि, ३ वसिष्ठ, ४ विश्वकर्मा, ५ मय, ६ नारद ७ नग्नजित, ८ विशालाक्ष, ९ पुरंदर, १० ब्रह्मा, ११ कुमार, १२ नंदीश, १३ शौनक, १४ गर्ग, १५ वासुदेव, १६ अनिरुद्ध, १७ शुक्र, १८ बृहस्पति ।
जिनके अतिरिक्त बृहत्संहितामें और सात नाम दिये हैं । ये हैं १ मनु, २ पराशर, ३ काश्यप, ४ भारद्वाज, ५ प्रल्हाद, ६ अगस्त्य और ७ मार्कंडेय | अग्निपुराण अ० ३९ की लोकाख्यायिकामें शिल्पशास्त्रके २५ ग्रंथोंकी नोंध मिलती है । वे तंत्र ग्रंथ है । पर जिनमें शिल्प उल्लेख मिलते हैं । उनमें १ शांडिल्य, २ गालव, ३ स्वयंभूव, ४ कपिल और ५ नृसिंह आदि के नाम हैं । वे तांत्रिक शिल्पग्रंथोके प्रणेता माने जाते हैं ।
उपरोक्त मुनिप्रणित शिल्पग्रंथ आज प्राप्य नहीं हैं किन्तु उन ग्रंथोके अलग अलग अध्याय मिलते हैं । या उन ग्रंथोके अवतरण या रेफरन्स अन्य ग्रंथोंमें देखने में आते हैं । बृहत्संहिता में गर्गमत का समर्थन है ।
स्मृति, संहिता और नीतिशास्त्र के ग्रंथो में शिल्प के उल्लेख हैं । पुराणों में तो अध्याय के अध्याय दिये हैं । तांत्रिक ग्रंथोंमें भी जैसा ही है । ज्योतिष ग्रंथों में भी शिल्प का विषय बहुत कुछ मिलता है । हमारे कमभाग्य हैं कि उपरोक्त आचार्यो का अक अखंड अटूट ग्रंथ उपलब्ध नहीं है ।
मासाद शिल्पशैली के प्रकार
नागरादि शिल्प प्रथोंमें कहा है कि भारतके विविध शिल्पकी चौदह जातियाँ विद्यमान थीं, जिनमें से आठ जातियों को देशके किन किन भागोंमें उस जाति के प्रासादकी रचना होती थी उल्लेख है ।
प्रांतोंके प्रासाद
उत्तम कहा है ।
जिसका अस्पष्ट