Book Title: Prasad Manjari
Author(s): Prabhashankar Oghadbhai Sompura
Publisher: Balwantrai Sompura

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Page 23
________________ प्रासाद रचना और राज्याश्रय भारतके प्रत्येक प्रांतकी प्रासाद शिल्पशैली मिन्नभिन्न देखनेमें आती है, किन्तु उसमें तलदर्शन प्लानकी रचना का विकास होता गया । ओरिस्सा, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, द्रविड, हलशाल, आंध्र, कश्मिर, विहार, बंगाल वगैरह प्रांत बचे खुचे स्थापत्यांका अभ्यास दर्शन करते । उनकी शिल्प शैली और रचनामे थोड़ी बहुत भिन्नता है । मूलदेव, स्थापन गर्भगृह (निजमंदिर) को द्रविड उडीसामें विमान कहते हैं । उससे आगे अंतराल, अिसके बाद प्रार्थना मंडप और आगे चतुष्किका (चौकी) इतना सामान्यतः होता है । उडीसामे नृत्य मंडप और भोग मंडप खास करके होते हैं । गुजरात राजस्थानमें गूढमंडप (दीवार वाला मंडप) स्त्रींकमंडप और नृत्य मंडप-तीन मंडप तेरहवीं सदीके बाद जैनमें होने लगे । अिस तरह क्रमशः विकसते हुए देवमंदिरोंकी रचना पूर्ण हुश्री । हरेक मंदिरमें थोडे बहुत खंडोका आधार देव महात्म्य, द्रव्य और स्थान पर निर्भर हैं । यह रचना उत्तर भारतके मंदिरोंमें देखने मीलती है । जब द्रविड मंदिर तो एक छोटी नगरी जैसे विस्तारमें होते हैं। निजमंदिर और प्रार्थना मंडप तो उत्तर भारत जैसे ही हैं, परंतु द्रविड मंदिरोंमें सुंदर कलामय प्रदक्षिणा पथ एक दो तीन या सात तक की संख्यामें होते है । दो प्रदक्षणाके बीच चौक होता है मंदिरकी सुरक्षाके लिये अत्तरोत्तर दुर्ग-कीला जैसे प्रदक्षणा मार्ग होता है । मंदिर के विस्तार में जलाशय, कुंड, भजनकिर्तन मंडप, अन्य परिवार देवोंके मंदिर खुला चौक और बाजार भी होते हैं । कभी मंदिरों में तो मंडप भी हजार हजार स्तंभो के हैं । अिससे ही द्रविड मंदिरोंकी विशालता अधिक होती है । मंदिरकी ऊँचाभी भी बहुत और भव्य है । प्रवेशद्वार भव्य और अनके अपर के सातसे बारह दरजे तक के गोपुर मीलोंतक देखने में आते हैं। द्रविड मंदिरोंका विशाल स्थापत्य समूहरुपसे ग्रेनाअिट जैसे काले पत्थरोंका है । करोडों का खर्च हुआ होगा । विख्यात पांड्य, चौल, पल्लव, चेरा और चालुक्य राजकुलोने शिव, विष्णु, देवी, कार्तिकस्वाभि आदि जुदे जुदे देवों के ये मंदिर हैं । ये राज्यकुल मंदिर निर्माणको भावप्रधान मानते । प्रत्येक भाविक भक्त भगवान के साकाररूपका पूजन अर्चन करने में अपने को धन्य समजता । अपने राज्य को देवांका राज्य मानते राजकी विपुल आयका ज्यादा भाग देव द्रव्य मानते । परिणामरूप द्रविडमें असे भव्य और विशाल देवमंदिरे के निर्माण हुआ है । विधर्मीके ससे वंचित होनेसे आजभी अनका अस्तित्व हैं । अत्तर भारत के राज्यवंशोकी धर्मभावना द्रविडोसे कम न थी। गुजरात में ENTERTAITHIL

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