Book Title: Pramey Kamal Marttandsara
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 10
________________ आचार्य प्रभाचन्द्र और उनका प्रमेयकमलमार्तण्ड भारतीय न्यायशास्त्र के विकास में प्रस्तुत मूल ग्रन्थ के कर्ता आचार्य प्रभाचन्द्र का अप्रतिम योगदान माना जाता है। उनकी कृतियों से ज्ञात होता है कि वे भारतीय दर्शनों और संस्कृत भाषा-व्याकरण एवं साहित्य के प्रकाण्ड पण्डित, मर्मज्ञ मनीषी आचार्य थे। उन्होंने दिगम्बर मुनि के रूप में विद्या और तप दोनों की कठोर साधना की तथा सभी जीवों का मोक्षमार्ग प्रशस्त किया। आप दर्शन के क्षेत्र में एक अनुपम भाष्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं। आचार्य प्रभाचन्द्र मूलसंघान्तर्गत नन्दिगण की आचार्य परम्परा में दीक्षित हुए थे। इनके गुरु 'पद्मनन्दि सैद्धान्त' थे। दक्षिण भारत में ही आपने शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की, उसके बाद आप धारानगरी आ गये, जहाँ आपने अनेक ग्रन्थों की रचना की। प्रभाचन्द्राचार्य धारानगरी के तत्कालीन राजा भोज के समकालीन हैं। भोजदेव के बाद उनका उत्तराधिकारी जयसिंहदेव राजा बना। जयसिंहदेव के काल में भी आचार्य प्रभाचन्द्र ने कई रचनायें की हैं। ___ आचार्य प्रभाचन्द्र के काल को लेकर विद्वानों ने काफी विमर्श किया है। काल सम्बन्धी विमर्श पर जो ऊहापोह हुआ है वह इस प्रकार (i) आचार्य जुगल किशोर मुख्तार, डॉ. पाठक आदि विद्वान् आचार्य प्रभाचन्द्र का समय 8वीं शती का उत्तरार्द्ध एवं 9वीं शती का पूर्वार्द्ध मानते हैं। इसका मुख्य आधार आचार्य जिनसेन (9वीं शती) कृत 'आदिपुराण' का वह उद्धरण है जिसमें प्रभाचन्द्र कवि और उनके चन्द्रोदय (न्यायकुमुदचन्द्र) का उल्लेख हुआ है।

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