Book Title: Pramey Kamal Marttandsara
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 8
________________ (vii) मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है। सर्वप्रथम मेरे पूज्य पिताजी प्रो. फूलचन्द प्रेमी जी तथा माँ डॉ. मुन्नीपुष्पा जैन (जैनदर्शन विभाग, सं.सं.वि.वि., वाराणसी) को इसका पूरा श्रेय देना चाहता हूँ जिनकी सतत प्रेरणा, सुझाव तथा मार्गदर्शन मुझे इस कार्य हेतु मिला है। गुरुवर प्रो. दयानन्द भार्गव जी तथा प्रो. दामोदर शास्त्री जी को जब मैंने यह कार्य बतलाया तब उन्होंने अनेक सुझाव दिये तथा प्रोत्साहित किया। मुझे प्रेस कॉपी तैयार करने में मेरी दो छात्राओं श्रीमती रश्मि जैन तथा श्रीमती दीपा शर्मा का सर्वाधिक सहयोग प्राप्त हुआ जब वे आचार्य कक्षा में अध्ययन कर रहीं थीं। इसी प्रकार मेरे अन्य विद्यार्थियों ने भी विविध सहयोग प्रदान किया है। मेरी धर्मपत्नी श्रीमती रुचि जैन (M.Sc., M.A.) ने मुझे यह कार्य करते रहने के लिए गृहस्थी के झंझावतों से मुक्त रखा तथा प्रेस कॉपियां तैयार करवायीं। पुत्र सुनय तथा पुत्री अनुप्रेक्षा तो मेरे लिए आशा और उत्साह के केन्द्र इसलिए रहे कि मुझे हमेशा यह महसूस होता रहा कि जिस प्रकार मुझे मेरे माता-पिता ने जिनवाणी की सेवा हेतु प्रेरणा बाल्यकाल से दी उसी प्रकार मैं अपने बच्चों को भी यह संस्कार दे सकू और भविष्य में ये भी 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' के सुयोग्य अध्येता बन सकें। जैनदर्शन विभाग में मेरे अग्रज कल्प आदरणीय प्रो. वीरसागर जैन जी मेरे लिए हमेशा हर कार्य में एक मार्गदर्शक की सफल एवं सार्थक भूमिका का निर्वहन करते हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ में भी कई महत्त्वपूर्ण स्थलों पर आपने मुझे नियमित समाधान दिये हैं। प्रूफ रीडिंग के समय भी आपने अपनी सूक्ष्म दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण संशोधन करवाये हैं। हमारे विभाग में हमारे अनन्य सहयोगी डॉ. कुलदीप जी ने भी पग-पग पर अपना सहयोग दिया है। विद्यापीठ के कुलपति प्रो. रमेश कुमार पाण्डेय जी तथा दर्शन संकाय के सभी आचार्यों ने जब भी जरूरत हुयी पूरा सहयोग दिया। महासभा अध्यक्ष श्री निर्मल सेठी जी ने इस ग्रन्थ के प्रकाशन से पूर्व ही इसकी प्रतियाँ खरीदने का अग्रिम आश्वासन देकर प्रोत्साहित किया। वरिष्ठ विद्वान् प्रो. राजाराम जैन जी ने इसमें महत्त्वपूर्ण सुझाव देकर इसे मूल्यांकित किया। भारतीय ज्ञानपीठ के प्रमुख साहू अखिलेश जैन जी

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