Book Title: Prakruti Parichaya Author(s): Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Digambar Sahitya Prakashan View full book textPage 8
________________ - हार्दिक भावना जैन धर्म के अनुसार आत्मा का कर्म प्रकृतियों के साथ अनादिकाल से सम्बन्ध चला आ रहा है, संक्षेप में कर्म प्रकृतियाँ आठ हैं और उत्तर भेदों की अपेक्षा 148 हैं । इन सब कर्म प्रकृतियों के वजह से आत्मा में जो परिणमन होता है वह विविध प्रकार है। मोहनीय के निमित्त से होने वाला परिणमन प्रमुख रूप से संसार का बंधन बढ़ाता है । इसे जीतने का प्रयत्न करना भव्यात्मा का कर्तव्य है । कर्म प्रकृति की परिभाषायें धवला, रा.वा., स.सि., कर्म प्रकृति आदि ग्रंथों में विभिन्न प्रकार से दी गई हैं। उन सब का 105 पूज्य दृढ़मती माताजी के सन्निधान में समीक्षाकर इस पुस्तक का निर्माण किया गया है। इस पुस्तक के सम्पादन में श्री ब्र. विनोद कुमार जैन, शास्त्री और ब्र. अनिल कुमार जी शास्त्री ने पर्याप्त परिश्रम किया है। श्री वर्णी दिगम्बर जैन गुरुकुल के स्नातक इस तरह साहित्यिक कार्यों में अपनी रुचि ले रहे हैं । इसकी बड़ी प्रसन्नता है। आशा है ये सब इसी तरह साहित्यक कार्यों में अग्रसर होते रहेंगे। पिसनहारी मढ़िया जबलपुर विनीत डा. पन्नालाल जैन साहित्याचार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 134