Book Title: Prakrit Vyakaranam
Author(s): Narmadashankar Damodar Shastri
Publisher: Narmadashankar Damodar Shastri

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मागधी व्याकरणम् गृहस्यधरपतौ गृहस्थाने घर इति खथघधनां घस्य हः कलीबें सूम् मोऽनुं गोरिहरं गोरीहरं वधूमुखं खथघधनयोः हः अनेन वा क्वचिद्दीर्घस्य ह्रस्वः इहु क्लीवेसूम् मोनु० वर्मुहं वहुमुहं। टीका भाषांतर. दीर्घ अने ह्रस्व ते दीर्घहस्व कहीए. ते दीर्घ अने इस्व प्राकृत जाषामां समासने विष परस्पर इस्व अने दीर्घ थाय बे. संस्कृत अंतर्वेदिः तेनु प्राकृत अंतावेइ थाय बे. ते आ प्रमाणे. अंत्यव्यंजनस्य ए सूत्रवडे अंतर्वेदि नार नो लुक श्रयो एटले अंतवेदि अयु, पनी आ सूत्रथी इस्वनो दीर्घ थयो तेथी त नो ता थाय एटले अंतावेदि एवं रूप आयु, पगी कगचजदतपयवा० ए सूत्रथी द् नो लोप भयो एटले अंतावेह एवं थयु, पनी अकलीबेसौदीर्घः ए नियमथी इ नो ई थयो, पनी अंत्यव्यंजनस्य ए सूत्रवडे स् नो लुक् अयो, एटले अंतावेह एवं रूपसिद्ध अयु. अंतावेइ ए शब्दनो अर्थ सम (सरखी) चूमि एवो श्राय जे. संस्कृत सप्तविंशति तेनुं प्राकृत सतावीसा एवं थाय . ते आ प्रमाणे-मूल सप्तन् अने विंशति हतुंः सप्त एटले सात अने विंशति एटखे वीश ( सत्तावीश) सप्तन् विंशति तेमां सेअंत्यव्यंजनस्य ए सूत्रवडे न नो लोप थयो, एटले सप्तविंशति थयुं; पनी कगटडतदपशषसां ए सूत्रथी प् नो लोप अयो, एटले सतविंशति एवं रूप थयु. पनी अनादौशेषादेशयोईित्वं ए सूत्रथी त नो विनवि थयो, एटले सत्तबिंशति एवं थयु, पजी आ सूत्रथी इस्वनो दीर्घ थयो, पनी विंशत्यादेलक ए सूत्रथी अनुस्वारनो लोप थयो, तेथी सत्ताविशतिः श्रयुं, पजी ईजिह्वासिंहत्रिंशदिशतौ ए सूत्रथी ति ने स्थाने वि अथवा वी आवे एटले सत्तावि (वी) श एवं श्रयु, पजी शषोःसः ए सूत्रथी श नो स थाय, एटले सत्तावीसः बाकी संस्कृतनी जेम सिद्ध करवं. अंत्यव्यंजन स् नो लुक् थयो, एटले सत्तावीसा एवं सिम थाय. संस्कृत युवतिजनः तेनुं प्राकृत जुवइजणो एवं थाय; ते या प्रमाणे-युवति एवो जन ते युवतिजन कहेवाय. प्रथम आदेोजः ए सूत्रथी यु नो जु थयो, एटले जुवतिजनः एवं थयु; पठी कगचजत ए सूत्रथी त नो लुक् थयो, एटले जुवइजनः एq थयु. पनी नोणः ए सूत्रथी न् नोण अयो, एटखे जुवइजणः एबुं अयु, पळी अंतःसे? ए सूत्रथी स् ने स्थाने डो थयो. पठी डित्यंत्यस्वरादेः ए संस्कृत व्याकरणना सूत्रथी ण ना अ नो लुक् अयो, एटले जुवइजणो ए रूप सिद्ध थयु. संस्कृत वारिमतिः तेनुं प्राकृत वारीमइ अने वारिमई बे रूप थाय. वारि-जल तेमां ने, मति-बुद्धि जेनी ते वारिमति. ते आ प्रमाणे सिद्ध श्राय . वारिमति तेने आ सूत्रथी इस्वनो विकटपे दीर्घ थाय एटले वारि अथवा वारीमतिः श्रयु. कगचज ए सूत्रवडे त नो लोप थयो एटले वारीम: अकलीबेसौदीर्घः ए सूत्रथी अंत्यव्यंजन सू नो लुकू ने दीर्घ अयो, एटले वारिम तथा वारीमई बे रूप सिद्ध श्राय . संस्कृत For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 477