Book Title: Prakaran Ratna Sangraha
Author(s): Kunvarji Anandji
Publisher: Kunvarji Anandji

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Page 258
________________ શ્રી ક્ષમાંકુલકમ ૨૪૫ मथ:-(इह ) Aawi ( पसंतजणमज्झसंठिओ संतो) शांतनाना मध्यभा २९सो सत। ( सो वि पसंतो) सन शांत डाय छ, ५ (जो) २ (कोवकारणे सइ) चिना ॥२। उपस्थित थये छत ( अकोहणो) स्थित ५७ ओधी न थाय ( सो इह पसंतो) ते ४i परेरे शांत गाय छे. २०. जइ खमसि दोसवंते, ता तुह खंतीइ होइ अवगासो । अह न खमसि ता तुह, अविसयाइ खंतीइ वावारो॥ २१ ॥ मर्थ:-(जइ) ने तु (दोसवते ) हषितने मेटले हपत 6५२ (खमसि ) सभीश-क्षमा ४२रीश (ता तुह खंतीइ) तो ताराम क्षभाना (अवगासो) २०१४ाश-व्या १२ (होइ) थशे. (अह न खमसि) ५ तेने नहीं समे (ता तुह ) ते तारे। ( खंतीइ वावारो) क्षमाना व्यापार ( अविसयाइ) विषय વિનાનો થશે, અર્થાત્ અપરાધીને ક્ષમા કરવી તે જ ક્ષમાને વ્યાપાર છે, અન્યથા તેના વ્યાપારની પ્રવૃત્તિ જ નથી. ૨૧ जइ खमसि तो नमिजसि, छज्जइ नामं पि तुह खमासमणो । अह न खमास न नमिजसि, नामं पि निरत्थयं वहसि ॥२२॥ मथ:- ०१! ( जइ खमसि ) ने तु क्षमा ४६२२० ( तो नमिजसि ) तो तु अन्यथा यहाश अर्थात् त। तने blon नभशे अने (तुह खमासमणो) तार क्षमाश्रम (नामंपि) नाम ५ (छजइ ) शमशे. ( अह न खमसि) भने ले क्षमा नडि ४२ ते (न नमिजसि ) अन्यथा वश नहीं मने (नामं पि) क्षमाश्रम ये नाभने ५५ (निरत्थयं वहसि ) ३ वन ४२नारे। हरीश. २२. दड्डो अ तवो फुसिओ अ, संयमो मइलिअंच चारित्तं । हारविअं सामन्नं, कोहकसायं वहंतेण ॥ २३॥ मथ:- ०१! ( कोहकसायं वहंतेण ) धि नामना ४ायने न ४२त। सवात ( तवो) तपने (दड्डो अ) पाणीहीधु, (संयमो) संयमन। (फुसिओ अ) नाश ४यो, (चारित्तं ) यारित्रने (मइलिअं च ) भलिन यु भने ( सामनं) श्रमपा (हारविअं) stv-युं अर्थात् यथा तार सर्व नष्ट थयु. २३. कोहानलवसगाणं, पसमामयभावियाण य हवंति। . इहयं चिय दोसगुणा, नायमचंकारिभट्टित्ति ॥ २४ ॥

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