________________
[१३]
१६ अष्टमी का चैत्यवन्दन
महा सुदि श्रामने दिने, विजया सुत जायो । तेम फागण सुदि ठमे, संभव चंवी आव्यो ॥ १ ॥ चैतर बढ़नी आठमे, जन्मया रिषभ जिंगद | दिक्षा पण ए दिन लही, हुआ प्रथम मुनिचन्द ||२|| माधव सुदि आठ दिने आठ कर्म कर्या दूर | अभिनंदन चोथा प्रभु, पाम्या सुख भरपूर ॥३॥ एहि आठम उजली, जनम्या सुमति जिंणद । आठ जाति कलशे करी, न्हवरावे सुर इन्द ||४॥ जनम्या जेठ वदि आठमे, मुनिसुव्रत स्वामी । नेम आषाड सुदि ठमे, अष्टमी गति पामी ||५|| श्रावण वदनी आठमे, नमि जनम्या जगभाण | तेम श्रावण शुद्धि आठमे, पास जिनु निर्वाण ॥ ६ ॥ भाद्रवा वदि आम दिने, चविया स्वामी सुपास । जिन उत्तम पद पद्म ने, सेव्या थी शिववास ॥७॥
१७ एकादशी का चैत्यवन्दन
शासन नायक वीर जी, प्रभु केवल पायो । संघ चतुर्विध स्थापवा, महसेन बन आयो ॥ १ ॥ माघव सित ऐकादशी, सोमिल द्विज यज्ञ । इन्द्रभृति आदि मल्या, एकादश विज्ञ ॥२॥