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[ ११५] ॥ ५ ॥ चंपा राज्य लेई करी रे, भोगवी कामित भोग । धर्म आराधी अवतयों रे, पहोतो नवमें सुरलोक ॥चतुर नर।।
ढील चौथी (राग-कंत तमाखु परीहरो-ए देशी) एम महिमा सिद्धचक्रनो, सुणी आराधे सुविवेक मोरे लाल । नव दिन नव आंबिल करी रे, गणणु तेर हजार मोरे लाल ॥ श्री सिद्धचक्र अाराधीए ॥ १ ॥ अडदल कमलनी थापना, मध्ये अरिहंत उदार मोरे लाल । चिहुं दिशे सिद्धादिक, चउ विदिशे चउ गुणधार मोरे लाल ॥ श्री सिद्धचक्र ॥ २ ॥ वे पडिकमणां जंत्रनी, पूजा देववंदन त्रिकाल मोरे लाल । नवमें दिन सुविशेषथी, पंचामृत कीजे पखाल मोरे लाल || श्री सिद्धचक्र ॥ ३ ॥ भूमि शयन ब्रह्म विधि धारणा, रुधी राखो त्रण जोग मोरे लाल गुरु वैयावच्च कीजिए, धरो सद्दहणा भोग मोरे लाल ॥ श्री सिद्धचक्र ॥ ४ ।। गुरु पडिलाभी पारीए, साहम्मिवच्छल पण होय मोरे लाल । उजमणां पण नव नवां, फल धान्य रयणादिक ढोय मोरे लाल । श्री सिद्धचक्र ।। ॥५॥ इह भव सवि सुख संपदा, परभवे सवि सुख थाय मोरे लाल । पंडित शान्तिविजय तणो, कहे 'मानविजय' उवज्झाय मोरे लाल ॥ श्री सिद्धचक्र ॥ ६ ॥