Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Author(s): Shiv Tilak Manohar Gunmala
Publisher: Shiv Tilak Manohar Gunmala
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[ १७४ ] पून्ये तो मल्यो जोग जैनौ ने । तज्यो तेह के केम तजाय ॥ गु० ॥ २॥ झांको गुरु विनानो उपासरो । सूनो सद्उपदेश बिन संघ रे ॥ गु० ॥३॥ जेह शुभ सिंहासन शोभतु । तेह खाली खावाने धाय रे ॥ गु० ॥ ४ ॥ आपे श्रावी पाषानो पलाली । पायु धर्म रुपी शुभ नीर रे ॥ गु० ॥ ५॥ नरनारी भरे छे नीर, नेत्रमा साणी वाणी सांभलवा काज रे ॥ गु० ॥ ६ ॥ दीवो ज्ञाननो गोती अमे लावीयां । हीरा आवी बश्यो छे यांय रे ॥ ग० ।। ७ ॥ मीठी वाणीने निर्मल वाक्यनो । स्वाद सोने रह्यो छे एहरे ॥ गु० ॥ ८ ॥ नाम स्मरण करी आपणो । 'मनोहर' करती सेवरे । गु० ॥८॥
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६ नवपदजी की गहूँली
( राग-महा विषम काले है विभू ) सांभलो भवियण गुरु मुख वाणी, नवपद महिमा मोटि रे । सिद्धचक्रनु ध्यान धरता, झलके झगमग ज्योती रे ॥ १ ॥ मयणा श्रीपाल तप आराध्यो, रोग गयो तत काल रे। जिन शासन नो डंको बाग्यो, मयणा हुई विख्यात रे ॥ सां० २ ॥ हवे कूवर परदेश सिधावे, लेइ माता आशीष रे । पंच परमेष्टी मनमां धरता, साधे वांछीत काज रे ॥ सां० ३॥ राणी परणे ऋद्धि पामे, सुख विलसे संसार

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