Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Author(s): Shiv Tilak Manohar Gunmala
Publisher: Shiv Tilak Manohar Gunmala

View full book text
Previous | Next

Page 196
________________ [ १६५ ] बत्रीस सुत थया सकल कला सजगीशजी ॥शी०॥४॥ एक दिन वीर चम्पापुरी थकी, धर्माशीशी कहावेजी । अम्बड साथे रे परीक्षा ते कर, पण समकित भड़गाजी ॥शी०॥ ॥५॥ देश विरतीनोर धर्म समाचारी, सरलोक गइ तेहजी। निर्मम नाम र भवि जिन, होस्ये पंदरमो गुण गेहजी ॥शी०॥७॥ इणि पर दृढ़ मन समकित गुण, ज्ञान विमल सुपसायजी । ते धन धन जग मांही जाणिये, नामे नवनिधी थायजी ॥शी०॥८॥ +- +-+- + ३६ श्री नवपदाधिकारे चरण सितरी करण सितरी सज्झाय। (राग-तुज साथे नहीं बोलुम्हारावाला-ते मुजने वी०-ए देशी) .....पंच महाव्रत दश विध यति धर्म, सत्तर संयम भेद पालेजी । वेयावच्च दश नव विध, ब्रह्म वड़ि भली अजुवाले जी ॥ १ ॥ ज्ञानादि त्रय बार भेदे, ता कर जे अनि दानेजी । क्रोधादिक चार नो निग्रह, ए चरण सित्तरी मानेजी ॥ २ ॥ चउविध पिंड वसति, वस्त्र पात्रह निर्दुषण ए लेवेजी । समिति पांच वली पडिमा, बारह भावना बारह सेवेजी ॥ ३ ॥ पचवीश पडिलेहन पण इंद्रिय, विषय विकार थी वार जी । त्रण गुप्ति ने चार अभिग्रह, द्रव्यादिक

Loading...

Page Navigation
1 ... 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208