Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Author(s): Shiv Tilak Manohar Gunmala
Publisher: Shiv Tilak Manohar Gunmala

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Page 201
________________ _ [१७० ] षट्रस दोसे, घरनी लक्ष्मी खीसे । अ० ४ ॥ चोथे दिवसे दरिशण सुजे, सातमे पूजा भणिये । ऋतुवंती मुनि ने पडिलाभे, सदगति सेजे हणिये । अ० ५॥ ऋतुवन्ती पाणी भरी लावे, जिन मंदिर जल आवे । बोधि बीज नवि पामे चेतन बहुत संसारी थावे ॥ अ०६॥ असज्झायमां जमवा बेसे, पांत बीचे मन हीसे । नाथ सर्व अभड़ावी जमती, दुरगति मां घणु भमशे ॥ अ० ७॥ सामायिक प्रतिक्रमणे ध्याने, सूत्र अक्षर नवि जोगी। कोई पुरुषने नवि अभडीये, तस फरसे तनु रोगी॥०८॥ जिन मुख जोतां भवमां भमिए, चंडालनी अवतार भुडण लुगण सांपीनी होवे, परभवे घणी वार ।।अ० ९॥ पापड़ बड़ी खेरादिक फरसी, तेनो स्वाद विनासी । आतम नो प्रातम छ साखी। हियड़े जो ने तपासी । अ० १० ॥ जाणी चोखाइ इम भणिये, समकित क्रिया शुद्धि । रिषभ विजय कहे जिन पाणथी, वेला वरसो सिद्धी । अ० ११ ॥ १ भगवान महावीर स्वामी की गहूँली (राग-सांभलजों मुनि संयम रागे) त्रिशला नंदन वंदन करिये, जपिये श्री वर्धमान रे। भव दुःख हरवा शिव सुख वरवा, करिये नित्य गुणगान रे ॥ त्रिशला १ ।। जग उपकारी सहु सुखकारी, शासन ना

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