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[ १६८] ३९ श्री दीवाली पर्व की सज्झाय दीवाली रढियाली पर्व सोहामणु, प्रेम धरीने आराधे नर नार जो । मन वचन काया नी स्थिरता केवली, जीवन ज्योत जगावे जय जय कारजो, दिवालो ॥ १ ॥ सुरपति नरपति सेवित तीर्थपति प्रभु, सिद्धारथ त्रिशला देवीना नंद जो, चोमासु छेल्लु करवाने पधारिया, पावापुरीमां घर घर वो अानन्द जो दीवाली ॥ २ ॥ चौदस दीवालीनो छठ तपादरी, पयकासन बेसी श्री भगवान जो । सोल पहोर सधी आपे मधुरी देशना, समवसरणमां करवा जग कल्याण जो ॥ दीवाली० ॥३। पंचावन अध्ययन पुन्य विपाकनां पंचावन पापनो फल विस्तार जो । अण पूछया छत्रीश सवालो दाखवे, उपदेशे आगम निगमनो सार जो दीवाली। ॥४॥ दीवालीनी राते छेल्ला प्होरमां, स्वाति चंद्र वर्धमान भगवान जो । नागकरणमां सर्वार्थ सिद्धि मुहू तमां, कर्मो तोड़ी पाम्या पद निर्वाण जो ॥दीवाली ५|| नव मल्ली की नव लच्छीवी त्रण गण राजवी, आहार पोसह लई सांभले धर्म रसाल जो । भाव उद्योत गयोने अंधारू थयु एम ए जाणी प्रगटावे दीपमाल जो ॥ दिवाली ॥६॥ पड़वे प्राःत काले गौतमस्वामी ने, प्रकटयु केवल ते ए पर्व प्रधान जो । बीजे जमाइया व्हेने नंदी राय ने, भाई बीजनु पर्व थयु ए प्रमाण जो ॥ दीवाली ॥८॥ त्यारथी पर्व दीवाली