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[ १६७] राणी लज्जा लील वरी । पांडव कुन्तादिक हरख्या, कहे धन्य धीर धरी र ॥ ल० ६ ॥ सत्य शील प्रतापे कृष्णा, भवजल पार तरी । जिन कहे शीयल धरे तस जनने, नमी ये पाय पड़ी रे ॥ ल० ७॥
३८ श्री हंसला की सज्झाय वणजारो धुतारो कामण गारो, सुन्दर वर काया छोड़ चल्यो वणझारो । धुतारो कामण गारो, एनी देहड़लीने छोड़ चल्यो वणझारो ॥१॥ एणी रं कायामां प्रभुजी पांच पणीयारीरे, पाणी भरे छे न्यारी न्यारी सुन्दर० ॥२॥ एणी रे कायामां प्रभुजी, सात समुद्र रे तेनो ते निरखारो मीठो सुन्दर ॥ ३॥ एणी रे कायामां प्रभुजी नवसे नावड़ीयाँरे, तेनो स्वभाब न्यारो न्यारो सुन्दर० ॥४॥ एणी रे कायामां प्रभुजी पांच रंतन छे, परखे परखण वालो सुन्दर ॥५॥ खुट गयो तेल, ने बुज गई बत्तीयां रे । मंदिर में पड़ गयो अंधेरो सुन्दर ॥६॥ खश गयो थंभो ने पड़ गई देहीयारे, मिट्टीमां मिल गयो गारो सुन्दर० ॥७॥ आनन्दघन कहे, सुनो भाई साधुरे, आवागमन निवारो सुन्दर ॥८॥