Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Author(s): Shiv Tilak Manohar Gunmala
Publisher: Shiv Tilak Manohar Gunmala

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Page 200
________________ [ १६६ ] प्रकटयु विश्वमां, वीर संभारण स्थिर बन्युं जगमाय जो । लोक लोक. तरमाँ छे पर्व ए मोटकु, उजवंता नर नारी सौ हरखाय जो || दिवाली ||८|| धर्मी जीव दिवालीनो छ उच्चर े, दीवाली नो पोसह कर बहुमान जो । वीर त्रिभुने चंदन पूजन जाप थी, भक्ति भाव श्राराधे एक तान जो | दीवाली | ||९|| महावीर सर्वज्ञ पारंगत, प्रभु गौतम स्वामी सर्वज्ञान नो कर जाप जो । ॐ ह्रीं श्री प्रारम्भे ने अंते नमः, माला वीस ए कापे सघला पाप जो ।। दीवाली ॥ १० ॥ दीवाली मां सूधो तप जप जे कर, लाख क्रोड़ फल पामे ते उजमाल जो । नबले वर्षे उत्सव रंग वधामणां, पद्मविजय 1 कर घर घर मंगल माल जों ।। दीवाली ॥११॥ की की ४० श्री अन्तराय की सज्झाय सरस्वती माता दे नमि ने, सरस वचन देनारी । सानु स्थानक बोले, ऋतुवंती जे नारी अलगी रहेजे रे, ठाणांग सुत्रनी वाणी काने सुणजेरे ॥ १ ॥ मोटी आशातना ऋतुवंतीनी, जिनजी ए प्रकाशी। मलिनपण जे मन धारे, ते मिथ्यामति वासी अ० २ ।। पहेले दिन चंडालीणी सरखी, ब्रह्म घातिनी वली बीजे । पर शासन कहे धोषण त्रीजे, चोथे शुद्ध वदीजे ॥ श्र० ३ ॥ खांडी पीसी रांदी पियुने, पर ने भोजन पिरसें । स्वाद न होवे ॥

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