Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Author(s): Shiv Tilak Manohar Gunmala
Publisher: Shiv Tilak Manohar Gunmala
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[ १६३]
गावे, भावे जे नरनार । ते शिव सुख पामे, पहोचे भवनो पार || नागोरी तपगच्छ, श्री चन्द्रकीर्ति सूरिराय । श्री हर्ष कीर्त्ति सूरि, जंपे तास पसाय || २ || जिम कृष्ण पक्षे शुक्ल पक्षे, शीयल पाल्यो निर्मलो । ते दंपतीना भाव शुद्ध, सदा सह गुरु सांभलो || जीम दुरित दोहग दूर जाये, सुख थाये बहु परे । वली धवल मंगल आवे वांछित, सुख कुशल घर अवतरे ॥ ३ ॥
३४ श्री दमयन्तीनी सज्झाय
( समुद्रपात मुनिवर जयो - ए देशी ) कुडिनपुर भीमनंदनी, दमयंती इति नाम सजनी । नयरी अयोध्या नो धणी, निषधांगज नलनाम सजनी ॥ शील सुरंग जे सती ॥ १ ॥ ए कणी || परणी निजा पुरवते, वने काउस्सग्गे रह्यो साधु सजनी. । तिलक प्रकाशे वंदीयो, गजमदथी गुण लाध सजनी ॥ शी० २ ॥ कुबेर साथै जुगटे रमते, हा राज्य सजनी । परदेशे दोय निसर्यां, सुते कीधो त्याज सजनी || शी० ३ || संकट सवी दूरे गया, बार वरसनी सीम सजनी । भावि शांति जिणंद नी, पड़ीमा पुजी नीम सजनी ॥ शी० ४ ॥ मासी मंदिर अनुक्रमे, कुब्ज रूपी त सजनी. । पुनरपि स्वयंवरने मिसे,
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