Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Author(s): Shiv Tilak Manohar Gunmala
Publisher: Shiv Tilak Manohar Gunmala

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Page 192
________________ [ १६१ ] पाली, नियम दुषण टालशुं ॥ तुमे अवर नारी परणीने, हवे शुक्ल पक्ष सुख भोगवो । कृष्ण पक्षे नियम पाली, अभिग्रह एम जोगवो ॥ ८ ॥ तव वलतो रे, तस भरथार कहे इस । ए संबंधी रे, हवे शंका नहि लाशो | तेह छांडी रे, शीयल सबल बेड पालशु ं । एह वारता रे, मात पिता ने न जणावशुं ॥ ९ ॥ मात पिता जब जाणशे, तव दिक्षा लेशु धरी दया । एम अभिग्रह लेइने, भाव चारित्री थया || एकत्र सया सयन करतां, खड्ग धारा व्रत धरे । मन वचन काया एकरी, शुद्ध शिवल बेउ चित्त धरे ॥१०॥ ढाल दूसरी बिमल केवली ताम चंपा नयरीए, ततक्षण आवी समोसर्या ए । आणी अधिक विवेक श्रावक जिनदास, कहे विनय गुणे परवर्या ॥ ११ ॥ सहस चौराशी साधु, मुज घर पारणो । करे जो मनोरथ तो फले ए ॥ केवल ज्ञान अगाध कहे श्रावक सुखो, एह बात तो नवि बने ए ।। १२ ।। किहां एटला साधु किहां वली सुजतो, भात पाणी एटलो ए । तो हवे तेह विचार करो तुमे, जिम तिम दीघां फल हुवे एटलोये || १३ || छेय एक कच्छ देश, सेठ विजय वली, विजया भार्या तस घरे ए । भाव यति ग्रही भेख, तेहने

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