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मात पिता सुत धामरे || तिहां राख्या जिन नाम रे, शरण कियो नेमि स्वाम रे । व्रत लेइ अभिराम रे, पोहोता शिवपुर ठाम रे || लाल ० ||५|| नित्य मित्र सम देहड़ी, सयणां पर्व सहाय रे । जिनवर धर्म उगारशे, जिम ते वंदनिक भाय रे || राखे मंत्रि उपाय रे, संतोष्यो वली राय रे । टाल्यां तेहना अपाय रे || लाल ० || ६ || जनम जरा मरणादिका, वयरी लागा छे केड़ रे । अरिहंत शरण ते आदरी, भव भम्रण दुःख फेड़ रे || शिव सुन्दरी घर तेड़ रे, नेह नवल रस रेड़ रे । साँची सुकृत सुर पेड़ रे || लाल० ॥७॥
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२८ बार भावना की सज्झाय दोहा
एम भव भव जे दुःख सहया, ते जाणे जगनाथ | भय भंजन भावठ हरण । न मल्यो अबिहड़ साथ ॥ १ ॥ तिण कारण जीव एकलो, छोड़ो राग गल पास । सवि संसारी जीवशु, धरि चित्त भाव उदास ॥२॥
ढाल चौथी (राग - गोड़ी )
चोथी भावना भवियण मन धरो, चेतन तु एकाकी
रे । आव्यो तिम जाइश परभव, बली इहां मूकी सवि बाकी
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