Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Author(s): Shiv Tilak Manohar Gunmala
Publisher: Shiv Tilak Manohar Gunmala

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Page 183
________________ [ १५२] रे । तेह नर बल पुण्य काठे, करत पर धर टेल माया. ॥हो० ५॥ भज सदा भगवन्त चेतन, सेव गुरु पद पद्य रे । रुप कहे कर धर्म करणी, पामे शाश्वत सम रे माया. ॥ हो० ६॥ २६ श्री तप की सज्झाय विरचित-श्री उदयरत्नजी कीधां कर्म निकंदवा रे, लेवा मुक्ति निदान । हत्या पातिक छुटवारे, नहि कोइ तप समान । भविकजन तप सरखु नहि कोय ॥ १ ॥ उत्तम तपना योगथी रे, सुर नर सेवे पाय । लब्धि अठावीस उपजेरे, मन वांछित फल थाय ॥ भ० २ ॥ तीर्थकर पद पामीये रे, नासे सघला रोग । रुप लीला सुख साहेबी रे, लहिये तप संयोग ॥ भ० ३ ॥ अष्ट कर्मना श्रोथने रे, तप टाले तत्काल । अवसर लहीने तेहनोरे, खप करजो उजमाल ॥ भ० ४ ॥ ते शुछ संसारमा रे, तपथी न होवे जेह । मनमा जे जे इच्छीये रे, सफल फले सही तेह ।। भ० ५ ।। वाह्य अभ्यंतर जे कह्या रे, तपना बार प्रकार । होजो तेनी चालमा रे, जेम धन्नो अणगार ॥ भ० ६॥ उदयरत्न कहे तप थकी रे, वाधे सुजस सनूर । स्वर्ग होवे घर आंगणेरे, दुर्गति नासे दूर । भ० ७॥

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