Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Author(s): Shiv Tilak Manohar Gunmala
Publisher: Shiv Tilak Manohar Gunmala

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Page 182
________________ [१५१ ] सारमा श्री जिन धर्म सार रे जीव. । प्राणी शांति समर समता धरी, चार तजी वली दरो चार रे ॥ जी. स० ॥ ॥७॥ प्राणी पांच तजो ने पांच भजो, व्रण जीपो त्रण गुणधार जीव. । प्राणी रयणी भोजन परिहरो, सात व्यसन तजो सुविचार रे ।। जी. स० ॥८॥ प्राणी रक्षा करो छे कायनी, सांभलो सदगुरु वाण रे जीव. । प्राणी साची शिखामण एह छे, एम कहे छे मुनि कल्याण रे ॥जी. स०॥ ॥६॥ २५ श्री आत्मबोध की सज्झाय विरचित-रूपविजयजी हो सुण आतम मत पड़ मोह पंजर मांहे, माया जाल रे॥ धन राज्य जो बन रुप रामा, सुत सुता घर बार रे । हुकम होद्या हाथी घोड़ा, कारमो परिवार माया जाल रे ॥ हो० १॥ अतुल बल हरि चक्री रामा, भजो चित्त मदमत्त रे । कर जम बल निकट आवे, गलित जाये सत्त माया । हो० २ ।। पुहवीने जे छत्र परे करे, मेरु नो करे दंड रे । ते पण हाथ घसता गया, मूकी सर्व अखंड माया हो०॥ ॥३॥ जे तखत बेसी हुकम करता, पहेरी नवला वेष रे। पाघ शेला धरत टेढ़ा, मरी गया जमदेश माया ॥ हो० ॥ ॥४॥ मुख तंबोलने अधर राता, करतं नव नवा खेल

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