Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Author(s): Shiv Tilak Manohar Gunmala
Publisher: Shiv Tilak Manohar Gunmala

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Page 180
________________ [ १४६ ] सनतकुमार मोटो मुनि रे, सुरपति गुण बोलंत रे ॥ धन० ॥ ॥ ५ ॥ हरि प्रणमे मुनि गुण सुणी रे, हरख्या बहुला देव । सुधन हर्ष पंडित कहे रे, धर्मी सुर करे सेव रे || धन० ६ || २३ श्री जम्बुस्वामी की सज्झाय ( जिहो विमल जिनेश्वर सुरु - ए देशी ) जिहो श्री सोहम पट राजीयो, जिहो जिन शासन शणगार । जिहो सोल वरपनो संयमी, जिहो चहती यौवन वार ॥ विरागी धन धन जंबुकुमार ॥ १ ॥ जिहो प्राण प्रिया प्रति बुझवी, जिहो सुकुलिगी ससनेह । जिहो गुणवन्ती गंगा जिसी, जिहो आठे सोवन देह || वि० २ ।। जिहो माता पिता मन चिंतवे, जिहो नंदन प्राण आधार । जो थकी अलगो थये, जियो थाशे कवण प्रकार ॥ वि० ३ ॥ जिहो घड़ी एक पुत्र वियोगनी; जिहो थाती वरस हजार । जिहो ते नानडियो विछड़ये, जिहो किम जाशे जमवार || वि० ४ ॥ जिहो पियरीया प्रेमदा तथा, जिहो पोतानो परिवार । जिहो पंच सया प्रति बुझन्या, जिहो प्रभवो पण तेणी वार || वि० ५ ।। जिहो भर जोबन धन भामिनी, जिहो हेजे करती होडी । जिहो हंसतां हेले परिहरी, जिहो कनक नवाणु कोड़ी ॥ वि० ६ ॥ जिहो

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