Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Author(s): Shiv Tilak Manohar Gunmala
Publisher: Shiv Tilak Manohar Gunmala

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Page 184
________________ [१५३] २७ बार भावना की सज्झाय दोहा पल पल छीजे आउखु, अंजिल जल ज्यु जेह । चलते साथें संबलो, लेइ सके तो लेह ॥१॥ लेये अचिंत्य गलसे ग्रही, समय सीचाणो प्रावि । शरण नहीं जिन वयण विण, तेणे हवे अशरण भावि ॥२॥ ___ढाल दूसरी (राग-राम गिरी) बीजी अशरण भावना, भोवो हृदय मोझार रे ।। धरम विना पर भव जतां, पापें न लहीश पार रे । जाइश नरक दुवार रे, तिहां तुज कवण आधार रे ॥१।। लाल सुरंगा रे प्राणीया, मूकने मोह जंजाल रे। मिथ्यामति सवि टाल रे, माया आल पंपाल रे ॥लाल०॥२।। माता पिता सुत कामिनी, भाई भयणिं सहाय रे ।। मेंमें करता रे अज परें, कमें ग्रह्यो जीव जाय रे । तिहां आड़ो कोई नवि थाय रे, दुःख न लीये कहें चाय रे ॥लाल०॥३॥ नंदनी सोवन डूंगरी, पावर नावी को काज रे ।। चक्री सुभूम ते जलधिमां, हायु खट खंड राजरे । बूड़यो चरम जहाजरे, देव गया सवि भाजरे, लोभे गई तस लाजरे, ला० ४॥ दीपायन दही द्वारिका, बलवंत गोविंद रामरे, राखी न शकयारे राजवी।

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