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[४८] ८ संभवनाथजी का स्तवन (राा-अजित जिणंदशु प्रीतडी-ए देशी) भव तारण संभव प्रभु, नीत नमीये हो नव नव धरी भावके नवसर नाटक नाचीये । वली राचीये हो पुजा करी चाव के सेना नंदन वंदिजे ॥१॥ दुःख दोहग दुरे करे, उपगारी हो मही महीमावंत के । भंगवंत भक्त वच्छल भलो, साई दीठे हो तन मन विकसंत के ॥सेना०॥२॥ अपराधीते उद्धर्या, हवे करीये हो तेहनी केही वातके । मुज वेला श्रालस धरे, किमविणसी हो जिननी तुम धात के ॥सेना०॥ ॥३॥ उभा अोलग कीजिये, वली लिजीये हो नित प्रत्ये तुम नाम के । तोपण मुजरो नवि लहो केता दिन हो इम रहे मनठाम के सेना०॥४॥ इम जाणीने कीजीये, जग ठाकर हो चाकर प्रतिपालके । तु दुःख तापने टालया, जयवंतो हो प्रभु मेघ विशाल के सेना०॥५॥
९ अनन्तनाथजी का स्तवन (राग-तमे पहु मित्री रे साहिबो-ए देशी)
ज्ञान अनंत अनंतनुं दरिशन चरण अनंत, सरस कुसुम वरसे घणां । समवसरण सुमहंत, अतिशय दीसे जिननाधना ॥१॥ नव पल्लव देवे रच्यो, तरुवर नाम अशोक ।