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[८३] पूछे तिहां सिंहदास गुरू प्रत्ये, उपज्या पुत्री ने रोग चतुर नर । थइ मुगी वली परणे को नहिं, ए शा कर्मना भोग चतुर नर ॥ भा० ७ ।। गुरू कहे पूरव भव तमे सांभलो, खेटक नयर वंसत चतुर नर ।श्री जिनदेव तिहां व्यवहारीओ, सुन्दरी गृहिणीनो कंत चतुर नर ।। भा० ८॥ बेटा पाँच थया हवे तेहने, पुत्री अति भली चार चतुर नर । भणवा मूक्या पांचे पुत्रने, पण ते चपल अपार 'चतुर नर ।भा.९॥
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ढाल दूसरी ते सुत पांचे हो के, पठण करे नहीं । रमतां रमतां हो के, दिन जाये वही ।शीखवे पंडित हो के, छात्रने शीख कगे। आवी माताने हो के, कहे सुत रुदन करी ॥१॥ मात अध्यारु हो के, अमने मारे घणु । काम अमारे हो । के, नहीं भणवा तणु॥ शंखणी माता हो के, सुतने शीख दीये । भणवा मत जाजो हो के, शुकंठ. शोष कीये ॥२॥ तेडवा तुमने हो के, अध्यारु आवे । तो तस हणजो हो के, पुनरपि जिम नावे ॥ शीखवी सुतने हो के, सुन्दरीए तिहां । पाटी पोथी हो के, अग्निमा नांखी दिया ॥३॥ ते वात सुणीने हो के, जिनदेव बोले इस्यु। फीट रे सुन्दरी हो के, काम कयु कीस्यु । मूरख राख्या हो के, ए सर्व पुत्र तमे । नारी बोली हो के, नकि जाणु अमे ॥४॥