________________
[६१] चिंतामणी लाधे ॥स०॥२॥ प्राण जे अहनी उत्थापशे, मानव मतिहीना। ते ऊंचा केम अावशे, दुःख देखने दीना ॥१०३॥ सेवे जे शुधे मने, चरणे चित लाई। नरनारी जिन नित्य नमे, धन्य तेहनी कमाइ ॥स०॥४॥ वाचक उदयनी विनती, परिकरने पुरे । महाराज लेजो मानीने, सदा उगते सूरे ॥स०॥॥
२५ शीतलनाथजी का स्तवन
(राग–मारे दिवाली थई आज-ए देशी) मुज मनड़ा मां तु वस्यो रे, ज्यु पुष्पोमां वासरे । अलगो न रहे एक घड़ी रे, सांभलरे सातो सास । तुमशु रंग लाग्यो, रंग लाग्यो सातेधात । तुमशु रंग लाग्यो त्रिभुवन नाथ ॥तु०॥१॥ शीतल स्वामी जे दिन रे, दीठो तुज देदार रे । ते दिन थी मन मांहरू, प्रभु लाग्युताहरीलार ॥तु०॥२॥ मधुकर चाहे मालतीरे, चाहे चंद चकोरे रे। तिम मुज मनने ताहरी, लागी लगन अति जोर ॥तु०॥३॥ भरे सरोवर उलटे रे, नदियां नीर न माय । तो पण जाचे मेघकुरे, जेम चातक जग माय ॥तु०॥४॥ तेम जगमांही तुम विना रे, मुज मन कोय रे । उदयवदे पद सेवना रे, प्रभु दीजे सनमुख होय ॥तु०॥५॥